tag:blogger.com,1999:blog-29446631794030559952024-03-21T06:34:09.676-07:00शब्द सृजनजब कोई विचार दिल और दिमाग में रासायनिक क्रिया करता है तो संवेदनाएं कुलमुलाने लगती हैं. तब पूरे शरीर मे एक खलबली मचती है. कुछ बाहर आने को मचलता है. यकायक शब्द बाहर आजाते हैं. कुछ शब्द गुच्छ से जुडने लगते हैं. जिन्हें देख कर मन प्रसन्न होता है. जब मित्रों को दिखाता हूं तो वह वाह वाही देते है, बधाई मिलती है. सुनाता हूं तो लोग तालियां बजाते है. मैं इतराता हूं. जब कुछ सृजित होता है तो गौरवान्वित हो जाता हूं.योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.comBlogger49125tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-31896716966039689782022-06-15T22:26:00.002-07:002022-06-15T22:26:26.756-07:00सीखने चाह रखना और सीखना आना दो अलग बात है<p> मैंने कई लोगों को जो बहुत कुछ सीखना चाहते हैं। वो सीखने की लालसा लिए घूमते हैं भटकते हैं। घुमते रहते हैं। किंतु सीखते नहीं है। जो सीखता है वो घूमता या भटकता नहीं बस सीख जाता है। हमारी अपनी चेतना इतनी प्रबल होती है कि यदि हम चाहें तो स्वयं ही, स्वयं से ही प्रयोग करके बहुत कुछ सीख सकते हैं। क्या सीखना है सबसे पहले यह प्रबल वेग आपके चित्त में होना आवश्यक है। अगर ये स्पष्ट हो जाए कि मुझे ये सीखना है तो बात बनने लगती है। लेकिन इसके बाद एक और प्रश्न है जो बहुत महत्तव का है, और वो है कि सीखना क्यों है? ये प्रश्न इतना महत्तव का है कि यदि इसका उत्तर जरा भी वैकल्पिक रहा तो सीखने का प्रश्न धुमिल हो जाएगा। जैसे मुझे खाना बनाना सीखना है। ये तो क्या का जवाब है। और क्यों का जवाब यदि ये है कि यदि मैंने खाना बना कर नहीं खाया तो मर जाऊँगा। तो फिर आपको कोई सिखाने वाला हो या न हो आप खाना बनाना स्वयं की प्रेरणा से ही सीख जाएंगे। अगर जवाब ये रहा कि बस ऐसे ही कभी कभी खुद भी बना कर खा लिया करेंगे। यदि क्यों का जवाब ये हुआ तो आप कुक एक्सपर्ट को खोजने में समय लगा दोगे। लेकिन यदि पहला जवाब हुआ तो आप तुरंत प्रयास करने लगोगे। एक बार विफल, एक बार स्वाद की समस्या आएगी, किंतु लगातार अभ्यास करते करते आप स्वयं से ही सीख जाएंगे। हाँ स्वयं के सीखने की प्रकि्रया में समय और संसाधन दोनों खराब अवश्य होंगे। किंतु अनुभव का स्तर उतना ही बड़ा होगा। सीखने के क्रम में यही बड़ी बात है कि सीखना क्यों है का जवाब कैसा है। जीवन मरण का प्रश्न हो तो जीवन की चाह जीने के तरीके स्वयं बना लेती है। किसी को जीना सिखाना नहीं पड़ता। एक बालक को माँ होते ही जंगल में छोड़ आई, वो 24 घंटे तक सर्ववाइव करता रहा, उसके अंतस की जीवटता के कारण ही ऐसा हुआ, उसको कोई बाह्य ज्ञान तो उस वक्त था ही नहीं। उसकी चेतना की समझ ही उसे संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। शरीर की क्षमताएं अपने आप हमारी चेतना की तरह काम करने लगती है। </p><p>कुछ लोग सीखने जाते हैं और पहले जिससे सीखने बैठते हैं उसकी योग्यता की जाँच करने लगते हैं? शंका में रहते हैं। बात साफ है जब आपका चित्त यह बात स्वीकार ही नहीं कर पा रहा है कि सामने वाले के पास आपको सिखाने जितनी सामर्थ्य है तो फिर आपका सीखना संदिग्ध ही है। इस लिए सीखना आना चाहिए। आप किसी योग्य व्यक्ति से भी सीख लोगो तो भी आप पूरा सीख जाओगो यह निश्चित नहीं, हर योग्य व्यक्ति सब जानता है यह निश्चित नहीं। आप जितना सीखोगे उससे कहीं अधिक आपके अंदर स्वयं जागृत हो सकता है। अत: सीखने से पहले समर्पण का भाव जरूरी होता है।</p><p>- योगेश समदर्शी</p>योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-63546687744128349662015-01-28T08:16:00.002-08:002022-06-15T22:15:32.384-07:00मैं गाँवों की पीड़ा गाने गाँव गाँव में जाता हूँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLaaVf2QiGt8YbRRfhDCH_a16awjqwnNDuXoEcK9b66eEFfZrZuWv3bmLORGHENPUCcTUJ09LVxcfunHhdpbl3CHsJXGzMyoW-7htJK7qwleO3uO6ST_byITIGsiUYQe2ghRRbbPl70MA/s1600/10903864_839203199451770_563777407660187899_o+(1).jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLaaVf2QiGt8YbRRfhDCH_a16awjqwnNDuXoEcK9b66eEFfZrZuWv3bmLORGHENPUCcTUJ09LVxcfunHhdpbl3CHsJXGzMyoW-7htJK7qwleO3uO6ST_byITIGsiUYQe2ghRRbbPl70MA/s320/10903864_839203199451770_563777407660187899_o+(1).jpg" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
मैं गाँवों की पीड़ा गाने गाँव गाँव में जाता हूँ </div>
<div style="text-align: justify;">
अपने दिल का दर्द गाँव में अपनों को दिखलाता हूँ </div>
<div style="text-align: justify;">
मैं खेतों की खलिहानों की पीड को भाषा देता हूँ </div>
<div style="text-align: justify;">घोर निराशा में कृषक है मैं उसको आशा देता हूँ </div>
<div style="text-align: justify;">संस्कृति का एक देवालय पड़ा है सूना गाँव में </div>
<div style="text-align: justify;">संस्कार पलते बढ़ते थे जहां पीपल की छाँव में </div>
<div style="text-align: justify;">
- योगेश समदर्शी
</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-73580053841513815402009-08-21T03:08:00.000-07:002022-06-15T22:28:16.643-07:00आह्! तिरंगा, वाह तिरंगा..."असली भारत" आज अकेला
ढूंढ रहा है कहां तिरंगा? <div>आह्! तिरंगा, वाह तिरंगा... </div><div> नारंगी उस रंग का मतलब
जो था हमको गया बताया </div><div>भ्रष्ट हुआ ईमान घूमता
धन का रंग है सब पर छाया </div><div>देश प्रेम का भाव घट रहा,
चिंतन घूम रहा बेढंगा.. </div><div>आह्! तिरंगा, वाह तिरंगा... </div><div><br /></div><div> ध्वल सफेदी का संदेश,
आज भला हम किस्से पूछें? </div><div>जिसको देखों अकड रहा है
और पनाता अपनी मूंछें </div><div>ज्ञान धूप में रिक्शा खींचे.
लूट का पैसा बढता चंगा.. </div><div>आह्! तिरंगा, वाह तिरंगा... </div><div><br /></div><div> हरियाली पथरीली बनती
ताड सरीखी उगी इमारत </div><div>भाई चारा गया भाड में
खूनी होती गई इबादत </div><div>आजादी का मक्खन निकला
और विकास का रंग दुरंगा. </div><div>आह्! तिरंगा, वाह तिरंगा... </div><div><br /></div><div>एक किनारा उधर बढा है
एक खाई नित होती गहरी </div><div>एक की मनचाही सब बातें
एक की जीवन रेखा ठहरी </div><div>एक के हाथों खूब कचौडी
और एक है घूमे नंगा. </div><div>आह्! तिरंगा, वाह तिरंगा... </div><div><br /></div><div>सच का मतलब शीना-जोरी
पछतावे के बंद रिवाज </div><div>स्वच्छंदता नित बढती ऐसे
जैसे बढे कोढ में खाज </div><div>आस्तीन जिनका घर होता
उनके शीने सजा तिरंगा. </div><div>आह्! तिरंगा, वाह तिरंगा... </div><div><br /></div><div>वह रंगों की बात करेगा
जो बेमेहनत धन पा जाए </div><div>उसको क्या रंगो से लेना
भूख में जो पत्थर खा जाए </div><div>खुशहाली के रंग अनेकों
पर दुख होता है बेरंगा </div><div>आह! तिरंगा, वाह तिरंगा...</div><div><br /></div><div>- योगेश समदर्शी</div>योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-77848601198006882722009-08-15T05:53:00.003-07:002009-08-15T05:53:32.287-07:00...जो विकसित तो न थे पर सुखी अवश्य थे...आज फिर देश के ऐतिहासिक स्मारक पर प्रधान मंत्री जी का भाषण हुआ. बातें बहुत बडी बडी हुई. ठीक वैसे ही जैसे होती हैं. मैं कोई विश्लेषक नहीं और न ही कोई कोलमिस्ट हूं किं मैं इस भाषण पर टिप्पणी करूं. फिर मैं कौन हूं. जी हां यह सवाल सही है. मैं हूं एक आम आदमी. मैंगो प्युपिल. लाल किले की प्राचीर से ऐलान किया गया कि देश को एक और हरित क्रांति की जरूरत है. गांव के विकास की जरूरत है. शहरों का विकास तो हो गया. अब गांवों की बारी है. अक्सर यह सवाल भी उठाए जाते रहते है. और ठीक राष्ट्रीय समस्या की तरह कि आज भी देश के अनेक गांव ऐसे हैं जहां बिजली और सडकें नहीं हैं. सवाल वाजिब है. बहस होनी चाहिये इस सवाल पर. पर कितनी बहस, कितने दिन तक? अगर हम सही सही उस सब का संकलन करें जितना इस विषय पर लिखा और कहा गया है तो उसको संजोने के लिये व्यवस्था करना दूभर हो सकता है. मैं विकास की इस परिकल्पना पर कुछ अपनी चिंताएं आपसे बांटना चाहता हूं. एक बात बताईए यदि हम शहरों को विकास का माडल मान लें. तो क्या आप एक स्वर मे सभी शहर वासियों से यह सुन सकते हैं कि यह सही माडल है. और यहा मानव सुरक्षित और सुख से जी रहा है. आम आदमी जो शहरों में रहता है. क्या हर तरह से सुखी है. चैन से जी पा रहा है.? और दूसरा सवाल यह कीजिये, उन लोगों से जो गांव छोड कर विकास का स्वाद लेने के लिये कुछ सालों पहले ही शहरों मे प्रतिस्थापित हुए हैं कि वह यहां इस विकास में ज्यादा सुखी है या उस अविकसित गांव में ज्यादा चैन से रहते थे. ज्यादा मानवीय तरीके से रह पा रहे थे. न कोई झंझट था और न कोई बहुत बडा खतरा ही था. तो मुझे लगता है कि जवाब कोई सकारात्मक नहीं मिलने वाला. लोगों को याद आती है गांव की चैन भरी सांस की. याद आती है गांव के उल्लस की. लोगों के आपसी प्रेम और सदभाव की याद अभी हम सबके दिलों मे बसी हुई है. धन, सुख साधनों और तथाकथित संपंननता से बहुत बडी चीज होती है मन की शांति.. जो गांव में निर्धन से निर्धन के पास पायी जा सकती है पर शहर मे धनिक से धनिक इससे वंचित देखे जा सकते है. तो फिर विकास का मतलब मानव की जीवन के लिये क्या हुआ. बडी बडी इमारतें बना लेना. फैंक्टरिया ही फैक्टरिया लगा लेना. रात दिन काम में लगे रहना. मशीनों के साथ आदमी का भी मशीन हो जाना. शरीर और प्रकृति का जो अपना अलग सम्वाद और सहयोग पर आधारित प्रक्रम है वह सब ध्वस्त कर देना. ग्लोबल वार्मिंग जैसे शब्दों का पैदा हो जाना और उसकी रक्षा और बचाव के नाम पर ही रोजी रोटी कमाने का धंधा बना लेना. जैसा कि इस समस्या पर कई सारी स्वयंसेवी संस्थाएं खडी हो गई है. और पूरे ऐशोआराम से इस काम को कर रही है. न तो उनके पास ग्लोबल वार्मिंग से बचने का कोई ठोस उपाय है और न ही कोई इसका व्यव्हारिक समाधान. यह संस्थाएं कहती तो है. कि ऐसी और फ्रिज की गैस से ओजोन परत का छेद बडा हो रहा है पर कहती हैं ऐसी कमरो में बैठ कर. बडे बडे फ्रिजों कि गिरफ्त में जीते हुए, तो ऐसे में भला ग्लोबल वार्मिंग का क्या बिगाड लेंगे ये लोग. दरसल समाजसेवा भी फैशन और स्टेटस सिंबल की भांति कुछ लोगों में पनप रहा है. जैसे कोई फिल्मी हंस्ती जेल में समाज सेवा करने पहुंच गई हो. पर यह सब ड्रामा है. और ड्रामा वास्तविकता से बेखबर होता है. हां रोचकता और मनोरंजन से भरपूर होता है. पर वास्तविकता में व्यक्ति और प्रकृति को आपसी संबंधों के आधार पर जीवन यापन करना होगा. विकास और ज्ञान दोनों में क्या रिश्ता है. विज्ञान की भी कुछ् सीमाएं होनी चाहिये. एक बात ऐसे समझना चाह्ता हूं कि. हम सबने विज्ञान से यह तो हांसिल कर लिया कि घोर गर्मी हो तो ऐसी से उस्से राहत पाई जा सकती है. हम पाने लगे. पर धीरे धीरे हमारा शरीर उसका आदि हो गया और बिजली के गुलाम हो गये हम. यदि बिजली नहीं तो हमारा जीवन असंभव जैसा लगता है. अब सोचिये अच्छी बात क्या है ? एक कि यदि बारिस हो तो हमें छाता चाहिये. नहीं तो हम बीमार हो जाएंगे, सर्दी हो तो हीटर चाहिये नहीं तो हम ठंड से मर जाएंगे और यदि गर्मी हो तो ऐसी चाहिये नही तो गर्मी से हम मरे. या दूसरी बात कि चाहे जो हो. हमारा शरीर हर मौसम के लिये तैयार है. बारिस में भीग कर हम उत्सव करेंगे. सर्दी में हम स्वास्थ्य वर्धक खा पीकर और ज्यादा कसरत करके शरीर को फैलादी बना लेंगे और गर्मी का हम पर असर ही नहीं होगा. और यह सब बिना किसी अतिरिक्त व्यय के केवल शारिरिक परिश्रम के संभव है. आश्चर्य की बात नही है. हामारे विज्ञानिकों ने यह नुक्ते भी हमें बताए थे. और इनपर आधारित एक जीवन शैली भी विकसित हुई थी जो जंगलों में प्राकर्तिक तरीके से रहते थे. बिना किसी संसाधन के मौज मस्ती के साथ पूरी नैतिकता के साथ , भगवत भजन और जीवन के सुखद अनुभव की कामना को संजो कर. पर इस विकास के भूत ने सब सटक लिया है. धरती पर हमने कंकरीट और तारकोल की परतें चढा दी है. पानी पडता भी है तो धरती के गर्भ तक नहीं जाता और धरती प्यासी मर रही है. सोचिये अभी ऐसा केवल शहरों मे हुआ है. जहां हम विकास मान रहे है. सुख की खोज में भाग रहे है. जब यही विकास नाम का राक्षस गांव में पहुंचेगा तो बिल्कुल वही हाल गांव मे भी होगा. अब एक बात और प्रधान मंत्री को गांव की याद हरित क्रांती के लिये आ रही है. पर हरित क्रांति कैसे होगी जय जवान जय किसान के नारों की खोखलाहट को कैसे ढक पाएंगे हम. ज्याद सम्मान और पावर तो मिले किसी को सब धनिकों और राजशाही ठाठ पर जीने वाले लोगों की संताने तो करें व्यापार, बने मालिक बडी बडी कम्पनियों के. बने इंजीनियर, डाक्टर, और लूटे मौज. किसान करे किसानी, किसान के बेटे जाएं फौज में, खपें सीमा पर, और अब करें हरित क्रांति यानि उपजाएं दालें, अनाज, क्योंकि शहर में इसकी कीमत बढ रही है. और जब किसान लोग सब उपजा लेंगे तो शहरों से सडको के रास्ते उनका सारा अनाज हम शहर ले आएंगे. इस काम के लिये हम गांव तक सडकें भी बनाएंगे. और गांव के आस पास ही हम उनके उत्पादन को पैक करके बेचने के लिये फैक्टरिया भी लगा देंगे. और फैक्टरियो के लिये बिजली भी जरूरी कर दी जाएगी. तो इस तरह गांव में भी विकास पहुंच जाएगा. गांव के लोग जो शाम ७ बजे तक आराम से सो जाते थे या हैं. वह भी देर रात तक इन फैंकटरियों के शोर शराबे से नहीं सो पाएंगे. प्रात काल नहीं उठा पाएंगे, टेंसन मे आजाएंगे तो हम उन्हें शराब पिला कर इस टेंशन से मुक्ति देंगे. विकास का अर्क है यह, इसके बिना पिये विकास की कीमत हमें समझ ही नहीं आती, विकास के इस ढांचे में शराब पीना, पानी पीने से भी ज्यादा जरूरी होता है. वर्ना यह विकास लोगों को मार्फत ही नहीं आयेगा<br />गांव के विकास की बात सुन कर मैं तो परेशान सा हुआ. पता नहीं क्यों जबकि मैं तो गांव छोड चुका हूं विकसित नगर मे रहता हूं. जिस दूरी को पैदल बडे आराम से आधा घंटे में पार कर सकता था उसक दूरी को पार करने के लिये धक्का मुक्की की इस्थिति में पशीने पशीने हो कर पूरे एक या डेढ घंटे में पार करता हूं. १८ घंटे काम करने के बाद भी गरीबी की रेखा से जरा सा ही ऊपर उठ पाया हूं. और यह जरा सा ऊपर उठपाने की बात कहने की हिम्मत बैंको के हर महीने बंधी हुई किश्तों से ही पैदा हुई है. वर्ना पता नहीं इस विकास नगरी में मैं कैसा और क्या होता... भगवान कोई गांव के अवशेष बचा सके तो बचा लें ताकि आने वाली पीढी को समझाया तो जा सके कि नहीं सुकुन और चैन से जीवन जीने का तरीका इसी धरती पर बहुत पहले इजाद हो चुका था... जो विकसित तो न थे पर सुखी अवश्य थे...योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-30759714599280487142009-03-07T07:00:00.000-08:002009-03-07T07:01:38.361-08:00इस होली पर कैसे, करलूं बातें साज कीअभी हरे हैं घाव,<br />कहां से लाऊं चाव,<br />नहीं बुझी है राख, <br />अभी तक ताज की<br /><br />खून, खून का रंग,<br />देख-देख मैं दंग,<br />इस होली पर कैसे,<br />करलूं बातें साज की<br /><br /><br />उसके कैसे रंगू मैं गाल<br />जिसका सूखा नहीं रुमाल <br />उन भीगे होठों को कह दूं<br />मैं होली किस अंदाज की<br />इस होली पर कैसे,<br />करलूं बातें साज कीयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-24886165403225462582009-02-11T19:11:00.000-08:002009-02-11T19:12:12.393-08:00गांव का घर मानव मंदिर, पत्थर का माकान नहीं है.गांव लोगों के रहने का,<br />केवल एक स्थान नहीं है.<br />गांव का घर मानव मंदिर, <br />पत्थर का माकान नहीं है. <br /><br />सभ्यता के चरम पै जाकर,<br />भाव सरल मन में जब आएं.<br />प्रकृति की गोद में खेलें,<br />पछी संग बैठे बतियायें.<br />खुली हवा में करें ठिठोली,<br />अंदर तक चित्त खुश हो जाए.<br />गांव छोड कर ऐसे सुख का, <br />अन्य कोई स्थान नहीं है.<br />गांव का घर मानव मंदिर <br />पत्थर का माकान नहीं है <br /><br />अपवादों को भूलो, पहले, <br />गांव का विज्ञान उठाओ.<br />कम साधन में जीने का, <br />वह पहला सुंदर ज्ञान उठाओ.<br />सहभागी हो साथ जिंएंगे,<br />जीवन एक अभिनाय उठाओ.<br />कल यंत्रों से चूर धरा को, <br />धो दे वह अरमान नहीं है.<br />गांव का घर मानव मंदिर,<br />पत्थर का माकान नहीं है.योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-31964902365117117882009-02-10T05:58:00.001-08:002009-02-10T05:58:42.480-08:00मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे.मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे.<br /><br />कच्चा एक माकान,<br />मिट्टी का सामान, <br />रेतीला सा आगन, <br />एक भोला सा मन, <br />लकडी वाला हल,<br />सरसों वाली खल, <br />लोटा भर के छाय, <br />काली वाली गाय, <br />यदि कहीं दिख जाय, <br />तब बोलूंगा आज आ गया अपने देश के गांव में., <br />मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे., <br /> <br />पुट्ठे वाले बैल, <br />जोशीले से छैल, <br />शरमीली सी नार, <br />तेल तेल की धार, <br />हरियाले से खेत, <br />उपजाऊ सा रेत, <br />पंगत में बारात<br />पीतल की पारात<br />लगने वाली बात<br />से यदि हो जाये मुलाकात<br />तब बोलूंगा आज आ गया अपने देश के गांव में., <br />मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे., <br /><br /><br />सरसों वाला साग<br />अट्ठखेली का फाग<br />बिन पैसे की टीड<br />छप्पर ठाती भीड<br />गांव भर की लाज<br />एक रोटी एक प्याज<br />भैंसो से भी प्यार<br />मेहनत को तैयार<br />खुशी खुसी बैगार<br />यदि कहीं दिख जाय, <br />तब बोलूंगा आज आ गया अपने देश के गांव में., <br />मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे.,योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-52157282013835729982009-02-09T06:00:00.000-08:002009-02-09T06:00:02.795-08:00जीना चाहते है वह मर कर.<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinLSRsawAk0gPu-WfvUEO0B6Z9xZhC1P8G9gdJXMZ2RBgORB_rR04udSyNExAb-Z294h_xc-DgYihSpWUFHuc-MUlWqn7U11jfaChASJHogyXdr0Kn4V8-jC4EbV5K0RnkzqoMa3BcrLg/s1600-h/y164737060796627.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinLSRsawAk0gPu-WfvUEO0B6Z9xZhC1P8G9gdJXMZ2RBgORB_rR04udSyNExAb-Z294h_xc-DgYihSpWUFHuc-MUlWqn7U11jfaChASJHogyXdr0Kn4V8-jC4EbV5K0RnkzqoMa3BcrLg/s400/y164737060796627.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5300433904385996786" /></a><br /><br />नाखुश इतने, नफरत कर कर.<br />रक्त पीपासा, उर में भर कर.<br />अपना नया ईश्वर रच कर,<br />जीना चाहते हैं वह मर कर.<br /><br />हाथ नहीं हथियार हैं उनके,<br />मस्तक धड से अलग चले है.<br />ईच्छा और विवेक से अनबन, <br />आस्तीन में सांप पले हैं.<br />काम धर्म का मान लिया है.<br />जाने कौन किताब को पढ कर.<br /><br />अपना नया, ईश्वर रच कर.<br />जीना चाहते, हैं वह मर कर.<br /><br />खून और चीतकार का जिसने,<br />अर्थ बदल कर उन्हे बताया.<br />निर्दोशों को मौत का तौहफा,<br />दे कर जिसने रब रिझाया.<br />मां के खून को किया कलंकित,<br />झूंठे निज गौरव को गढ कर.<br /><br />अपना नया ईश्वर रच कर.<br />जीना चाहते हैं वह मर कर.<br /><br />बचपन की मुस्कान है जीवन,<br />कांश उन्हें भी कोई बताये.<br />रास रस उलास है जीवन, <br />कोई उनको यह समझाये.<br />क्यों खुद को आहूत कर रहे,<br />भ्रमित उस संसार में फंसकर.<br /><br />अपना नया ईश्वर रच कर.<br />जीना चाहते हैं वह मर कर.योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-27033767513882859352009-02-07T16:00:00.000-08:002009-02-08T02:58:44.201-08:00गांव वाले घर मे अम्मा सब कुछ थी कुछ भी न होकर<!--chitthajagat claim code--><br /><a href="http://www.chitthajagat.in/?claim=irf3o62dkpl9&ping=http://ysamdarshi.blogspot.com/" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी"><img src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagatping.png" border="0" alt="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी";></a><br /><!--chitthajagat claim code--><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiQdKpMsUdpFGCc7DboFTL1OBpgHOi5799mMQh_ryNMSTEgcrvwmpmRxGtT8CXzcOgZkLPXNJ7UGXjoq-Q9NhAPEyqQiKEf2CeJjwX9wIe8475GGavKXyLIyu3cNpwAJKZlVaVHRUOCH0/s1600-h/2130646031_e01044f410_b.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5300101567442157874" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 400px; CURSOR: hand; HEIGHT: 300px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiQdKpMsUdpFGCc7DboFTL1OBpgHOi5799mMQh_ryNMSTEgcrvwmpmRxGtT8CXzcOgZkLPXNJ7UGXjoq-Q9NhAPEyqQiKEf2CeJjwX9wIe8475GGavKXyLIyu3cNpwAJKZlVaVHRUOCH0/s400/2130646031_e01044f410_b.jpg" border="0" /></a><br /><div><span class=""></span></div><div>सुबह सवेरे जग जाती <span class="">थी,</span> गाय धू कर दूध <span class="">बिलोकर.</span><br />गांव वाले घर में <span class="">अम्मा,</span> सब कुछ थी कुछ भी न <span class="">होकर.</span></div><div></div><div></div><div></div><div></div><div></div><div><span class=""></span></div><div>दूध मलाई और <span class="">पिटाई,</span> तक उसके हाथों से <span class="">खाई.</span><br />रोज सवेरे वह कहती थी, उठो धूप सर पे है <span class="">आई.</span><br />उपले पाथ रही अम्मा <span class="">को,</span> याद करूं हूं अब मैं <span class="">रोकर.</span><br />गांव वाले घर में <span class="">अम्मा,</span> सब कुछ थी कुछ भी न <span class="">होकर.</span></div><br /><div></div><div>बापू, चाचा, ताऊ <span class="">दादा,</span> सबकी एक अकेली सुनती.<br />गलती तो बच्चे करते थे, पर अम्मा ही गाली <span class="">सुनती.</span><br />रोती रोती आंगन लीपे, घूंघट भीतर लाज <span class="">संजोकर.</span></div><div><span class=""></span><span class="">गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.</span></div><div></div><div></div><div></div><div></div><div></div><div></div><div><span class=""></span></div><div>काला अक्षर भैंस बताती, लेकिन राम चौपाई <span class="">गाती.</span></div><div>पूरे घर के हम बच्चों <span class="">को,</span> आदर्शों की कथा बताती.<br />सत्यवादी होने को <span class="">कहती,</span> हरिश्चंद्र की कथा <span class="">बताकर.</span></div><div><span class=""></span>गांव वाले घर में <span class="">अम्मा,</span> सब कुछ थी कुछ भी न <span class="">होकर.</span></div><br /><div></div><div>पढीं लिखीं बहुंओं को <span class="">अम्मा,</span> बस अब तो इतना कहती <span class="">है.</span><br />औरत बडे दिल की होवे <span class="">है,</span> इस खातिर वह सब सहती <span class="">है.</span><br />पेड भला क्या पा जाता <span class="">है,</span> अपने सारे फल को <span class="">खोकर.</span><br />गांव वाले घर में <span class="">अम्मा,</span> सब कुछ थी कुछ भी न <span class="">होकर.</span></div>योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-77817887178508994132008-03-20T11:25:00.000-07:002008-03-20T11:30:32.855-07:00पिया जी अबकी होली में<span style="color:#ff0000;">रंग मोय ऐसा दीजो लाय<br />पिया जी अबकी होली में<br /></span>कै जासै मगज तैरो फिर जाय<br />पिया जी अबकी होली में<br /><span class=""></span><br /><span style="color:#3366ff;">अबके फाल्गुन बम्बई जईयो,<br />वहां राज कै रंग लगईयो<br />प्यार भरी ठंडई पियईयो<br />बडे ठाकरे से मिलयईयो<br /></span><span style="color:#ff0000;">कौन मराठा कौन बिहारी<br />अंतर सब मिट जाय<br /></span>पिया जी अबकी होली में<br /><span class=""></span><br /><span style="color:#006600;">अबकी होली पाक भी जाईयो<br />दंगे की तुम आग बुझईयो<br />मुश को अपने गले लगईयो<br />प्यार के रंग में सब रंग दईयो<br /></span><span style="color:#ff0000;">छोड के सारे बैर पुराने<br />हम कट्ठे हों जाय<br /></span>पिया जी अबकी होली में<br /><span class=""></span><br /><span style="color:#3333ff;">अबके पिया तू दिल्ली जईयो<br />सगले नेता से मिलियईयो<br />संसद बैठ उन्हें समझइयो<br />देश का सारा हाल बतईयो</span><br /><span style="color:#ff0000;">देश प्रेम के रंग मे रंग कै<br />सबका एक ही दल बन जाय</span><br />पिया जी अबकी होली मेंयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-2205125373553377132008-02-15T00:07:00.000-08:002008-02-15T00:37:07.867-08:00कुछ तो बात बात बस बात बात की खाते हैंकुछ तो बात बात बस बात बात की खाते हैं<br />कुछ मेहनत सौ की दो पाकर पछताते हैं<br /><br />मूल ने अपना दाम खो दिया,<br />चमक दमक का लगता मोल.<br />आलू १० का धडी तुलेगा<br />चिप्स बिके चांदी के मोल<br />एक वक्त में रुपये हजारों खाते कुछ<br />कुछ ऐसे हैं जो पानी पी सो जाते है.<br /><br />श्रम देवता खडा खडा शर्माता है<br />नया खून है मेहनत से कतराता है<br />शिक्षा कैसी आज निगूडी बन बैठी<br />बेटा बाप को अनपढ कह ठुकराता है<br />उनके घर में पौशाके हैं भरी पडी<br />नंगे बदन वो देख कपास उगाते है.योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-40349907557752715932008-02-14T03:14:00.000-08:002008-02-14T03:18:43.262-08:00प्यार के व्यापारिकरण का उत्सव....<p>आज सवेरे से ही वेलेअटाईन डे का माहोल था मैने अपने जीमेल टैग पर टांक दिया... "प्यार के व्यापारिकरण का उत्सव...." इसे देख कर मेरे एक मित्र मोहिन्दर जी ने मुझसे कुछ बाते की बात क्योंकी सामाजिक नजरिये से संबंधित थीं अत मेरे लिये संग्रहणीय हैं और आपके लिये पठनीय भी..... आप के समक्ष ज्यों की त्यों परस्तुत है.... अपनी टिप्पणी भी आप दे सकते है...... </p><p>mohinder: नमस्कार.... गुलाब के कितने फ़ूल काम आये आज<br />me: apnee to vichaardhaara hi alag hai<br />प्यार के व्यापारिकरण का उत्सव....<br />mohinder: आप की धारा किस तरफ़ बहती है ?<br />वही देख कर पूछा था ?<br />me: kaam shootra day ki taraph ko kuch kuch<br />konark ki taraph se bhii or khujraho se gujarati hi<br />or sheedhe swarg ko jaati hai<br />dharm - arth - kaam- moksh...<br />mohinder: योगेश जी... स्त्री पुरुष का आपस में आकर्षण आदिकाल से है और आगे भी युगों तक रहेगा जब तक दुनिया रहेगी हां आसक्ति की मात्रा हर मनुष्य में अलग हो सकती है<br />अथवा उसे स्वीकारने में हिचकिचाहट की मात्रा भी भिन्न हो सकती है<br />Sent at 4:10 PM on Monday<br />me: mohinder ji maine is baat se inkaar kab kiya par yeh batao ki us aakarshan main do hajaar rs ka nakli phool ya khilona ya phir koi or gift ya main kahoon ki ek akarshak sa chapa mahanga kaard kya karta hai<br />mohinder: स्वर्ग नरक की व्याख्या तो धर्म के ठेकेदारों ने कि है जो इसी की आड में अपनी दुकान चलाते हैं<br />सब कुछ यहीं हैं<br />me: aakarshan koi din visheh ka bhee nahi hota sadev hota hai<br />hara din ho sakta hai<br />maheene do maheene taka lagaataar bhi ho sakta hai<br />mohinder: परन्तु किसी दिन को तो इसके लिये विशेष बनाया जा सकता है.... हर्ज क्या है<br />अगर होली दिवाली क्रिसमस हो सकता है<br />होली के नाम पर दिनो दिनो गोपी और गवालों की रास लीला चल सकती है तो एक दिन वेलन्डाईन डे क्यों नहीं<br />me: manaiye naa bhai sahab khoob manaiye par ham nahi manate<br />mohinder: और जिन्हें ओछी हरकत करनी होती है वह किसी दिन विशेष का इन्तजार नहीं करते<br />उनके लिये हर दिन बेलन्टाईन डे है<br />योगेश जी मेरा तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि कोई भी दिन हो यदि मर्यादा में रहते हुये कोई भी काम हो तो बुरा नहीं है<br />me: baat sahi hai aapki main bhi yahi kahta hoon yadi aapko patni ko phool dena hai to do...<br />girlfriend ko khush karna hai to karo<br />or sex karna hai to karo par<br />ek visheh din uske liye rakhna hai to woh bhi rakho<br />par kya sab ek hi din jaroori hai<br />sab apni apni suvidha ke saath bhi to vishesh din rakh sakte hain<br />par nahi aisa yadi hua to baazaar nahi lagega<br />mohinder: इसे आप प्यार की बर्षगांठ मान लीजिये<br />me: holi diwali ke tyohaar ke baazaarikarn ka bhi main virodhi hoon janab...<br />kya sabke pyaar ki varsh gaanth ek hi din hogi mitra<br />mohinder: रूटीन में तो सभी तोहफ़ा देते है... किसी दिन विशेष पर दिये गये तोहफ़े का अधिक महत्व होता है<br />Sent at 4:17 PM on Monday<br />mohinder: प्यार हो त्योहार हो या वर्षगांठ यह सब इसलिये है ताकि वह दिन बाकी दिनों से कुछ अलग हो<br />me: aap ki marji maire samjhaane se aap nahi maanne wale or aapke samjhaane se main<br />mohinder: कोई बीच का रास्ता चुन लो यार<br />कहो तो मैं ही मान जाता हूं<br />टकराव में क्या है<br />me: ka karod log bhooke hain nage hain unke pet baharne ka din bhi taya kariye hojoor..<br />mohinder: मजदूर दिवस नहीं मनाते आप<br />me: majdoor or majboor do alag alag shab or artha hain janaab<br />Sent at 4:20 PM on Monday<br />mohinder: ईश्वर ने सबको एक सा बदन दिया है..... हां मजबूरी वाली वात अलग है<br />बेल्नटाईन का विरोध करने की वजाये उनके लिये क्या किया जाये यह सोचना जरूरी है<br />हम तो एक NGO बना कर उनके लिये काम कर रहे हैं<br />me: aap bataiye kya kiya ja sakta hai<br />mohinder: हिन्द युग्म एक NGO के रूप में रजिस्टर हो गया है और उसके कुछ कार्य क्षेत्र हैं<br />me: badhai hai<br />mohinder: ग्रामीण इलाकों में होनहार गरीब छात्रों का चयन व उन्हे शिक्षा के लिये मदद देना<br />me: ji phir shikhsa ke baad uneh velentine manaane ka saamana ( jaise............) muhaiya karane ki jimmedaari bhi NGO ki hogi kya.....<br />mohinder: आप विष्य से भटक जाते है<br />Dark and smoky cabins are not porticose of moral philosophy<br />me: kyon<br />dohre chehre ache nahi hote mahender ji<br />dikhte to shaadhoo hai or phanste rape kaise main hai ...<br />mohinder: किसी एक को जरनालाईज नहींकिया जा सकता योगेश जी<br />में साकारात्मक सोच का व्यक्ति हूं<br />me: sakaratmakta bhi drama hoti ja rahi hai mahender ji....<br />mohinder: सिर्फ़ आलोचना इसका समाधान नहीं है<br />me: jab sakaratmak log udharan dete hain tab woh kisi ek ko generalise kar sakte hain par doosron ki har baat jo aapke apne girebaan ko jhanjode woh nakaratmakta ki gali main bhatakti dikhaai deti hai ..... sabko<br />mohinder: एक लंगडा दूसरे को दौड लगाने को कहे तो व्यर्थ है<br />me: khud ki beti velentine de par kisi mustande ke saath galbahiyan manate dekh kar saare velentinedey manane wale log apni partikriya batayen ki kya dil khush hoga ....<br />mohinder: आप के मन में कोई तूफ़ान है<br />जो आपको एक दिशा में नहीं जाने देता<br />me: ho nahi sakta ya to yeh kaha kar samjhaana padega ki khar hota hai ya phir jaan poch kar najarandaaj kiya jaayega<br />mohinder: यही इस देश का दुर्भाग्य है कि भाष्ण देने वाले बहुत हैं ... काम करने वाले कम<br />Sent at 4:31 PM on Monday<br />mohinder: मन्दिर में ज्यादा चन्दा जाता है... अनाथ आश्रम में कम<br />me: shaadi ke baad beti ki olaad pyaari hoti hai par najayad or boyfriend se tayaar aullad ko koi baap naati kahane ki himmat nahi dikaa paaya aaja tak aise samaaj main yadi velentine ke naam par karodon ka vyaapaar ho raha hota hai to aap uski taraphdaari karte hai or kahate hain bhaartiye sabhyata main pyaar ki jagah thi haan thee par pyaar ko sare baajaar nahi kiya gaya thaa janaab yeh to ham bhi kahate hain ki hamaari aadiparampara main koi kami nahi hai bas wahan jo hai niri hai, nikhaalish hai, swarth ka put nahi hai ... bazaar mukt utsav hai.... wahana aur aajka sab baajaar par nirbhar hai ..<br />mohinder: शायद ईश्वर को मदद की ज्यादा जरूरत है<br />आप क्या समझते हैं वेल्नटाईन वाले दिन बहुत सी नाजायज औलाद पैदा होंगी ?<br />mohinder: और अगर होंगी तो जो इनके लिये जिम्मेदार हैं उन्हे भुगतने दीजिये<br />आप क्यों परेशान हैं<br />me: nahi mitra aulad paida nahi hoongi yeh hi to mer baat nahi samajh rahi hain aap... yadi aulaad paida hui to mushibat aulaad paida karne ke liye koi sasoora velentine day ka intjaar nahi karta ...<br />baajaar bhar main board lage hain ki Condome le ke chalo... phir bhala najayaj aulaad kyon...<br />velentine day kamaane ke liye hai kis ko kisi kaa pyaar dilvaane ya muhaiyaa karane ke liye nahi hai janaab...<br />mohinder: हा हा,, तभी तो कह रहा हूं हम अपना काम करें... और जो वो कर रहे है उन्हें करने दें<br />you can not change anybody.....only you can change your self<br />this I have learnt from life</p><p>आपका क्या मानन है हमें जानकर हर्ष होगा....</p>योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-6512346269682967992008-02-12T11:08:00.000-08:002008-02-12T11:11:16.985-08:00गुर्दे चोरी हो रहे, कैसा भया गजबकैसा अजीब दौर है, इस जहां में अब<br />गुर्दे चोरी हो रहे, कैसा भया गजब<br /><br />बेदिल फिरती देहों से क्या चाहते हैं आप<br />जीव जीव सब एक हैं हत्या माने पाप<br />जो नित कलेजे चीर कर करते देखे मौज<br />महानगर में देखिये, मांसाहारी की फौज<br />फिर गुर्दों का व्यापार भी उतना नहीं अजब<br />गुर्दे चोरी हो रहे, कैसा भया गजबयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-72258711879873047502008-01-25T00:28:00.000-08:002008-01-25T00:31:16.125-08:00अपने लिये वोट मांगना ठीक नहीं ; मेरा मतमेरे एक मित्र हैं नाम तो याद नही आ रहा पर सर नेम गांधी हैं. पिछले वर्ष ही उनसे भेंट हुई थी. उन्होंने नारा दिया कि नोट नहीं तो वोट नहीं. सार यह था कि देश की कुल सकल आय में देश के नागरिकों का हिस्सा होना चाहिये. और जो नेता ऐसा करने का वादा करेगा उसे हम वोट देंगे. बात आती है ब्लोग को वोट देने कि. बात रोजाना टीवी पर चल रहे रियेलिटि (जिसे मैं तो वास्तविक भी नहीं मानता) वहां पर भी नित हमसे वोट मांगे जाते हैं. देश की सरकार, राज्य की सरकार, मोह्ळ्ला लेवल तक सैंकडों मौकों पर हमारे मत के लिये लोग गुहार लगाते दिखते है. एक बार सोचा एक आम नागरिक के बारे मै जिसके वोट से कई तो मंत्री बन गये और कई क्या से क्या हो गये.पर वोट देने वाला हमेशा वहीं खडा रहा. वोट मांग कर उत्तम साबित होने की दौड पता नहीं मुझे क्यों नहीं जमती. मैं भी ब्लोगर हूं पर मैं अपना नामांकन खुद कर दूं यह मुझसे ना हो सका. मैं एक बात कहना चाह्ता हूं कि यदि मेरे मन मैं कोई खोंट नही और मैं जानता हू की मैं क्या हूं तो दूसरे मुझे चाहे जो कहें दूसरों के मत की महत्त क्या.. और मांग कर मिले वोट की वास्त्र्किता भी संदिग्ध होती है. मैं तो आपसे यही कहना चाह्ता हूं की. हमें अपना काम करना चाहिये और इसलिये करना चाहिये कि हमे करने में मजा आता है, लोगों को अच्छा लगेगा तो लोग स्वयं मुझे मानित करेंगे..आप अच्छे ब्लोगिस्ट हैं इस बात का सर्टिफिकेट आप खुद स्व्यं को दें दें कि आप उत्तम हैं या फिर राय वो मांगे जो यह तय करना चाह्ते हैं कि इन दस लोगों में से कौन उत्तम है आप किसी से अपनी लिये वोट ना मांगे मैं तो कहता हूं कि किसी भी व्यक्ति को अपने लिये वोट नहीं मांगनी चाहिये. काम बोल्ता है साहब. नैतिकता को जिंदा रहने दो. पंचायतों मै जब किसी को पंच चुना जाता था रो लोग कहती थे कि फला व्यक्ति सरपंच बनेंगे. और वह व्यक्ति जो पंचायत में केवल शामिल होनी आया था वह कहता था नहीं मैं इस जिम्मेदारी को नही उठा पाऊंगा. और जब वो सरपंच बनता था तो जिम्मेदारी निभाता थी... काम करता था. जब हम पहले से पुलाव पका लेते हैं कि हम सरपंच बनेंगे तो सब गडबड होने लगता है. आप उत्तम दर्जे के लेखक है यह लोगों को तय करने दो... टीवी पर जो लोग वोट के रूप में एस एम एस करने का निवेदन करते हैं वह वास्तव में वोट नही नोट मांग रहे होते है. ... एक एसएमएस मतलब ३ रुपये. १ लाख वोट मतलब ३ लाख रुपये.... मित्रों ब्लोग की दुनिया को स्वार्थ की दुनिया से दूर रखो बाजार हर जगह शोभा नहीं देता.. धर्मार्थ प्याऊ और अस्पताल की संस्क्२ति की महत्ता अब तो विचारी जा सकती है.. और यह काम ब्लोगिस्ट कर सक्ते है.... अखबार और पत्रिकाएं सब बाजार का खिलोना हो गई है. वहा वही लिखा और छापा जाने लगा है जो बिक सके या बिकवा सके पर ब्लोग पर वो लिखा जा सकता है जो जीवन बदल सके.... जो अमिट हो.... जो आत्मा की आवाज हो....<br />आत मित्र मांगना छोड दीजिये...<br />आपका योगेश कुमारयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-31462960250395198692007-09-28T01:40:00.000-07:002007-09-28T01:42:55.088-07:00आई मुझको याद गांव की.......आज सवेरे बींच शहर मे एक नन्हे बालक को देखा<br />साहब देखे एक कार में, एक रिक्शा चालक को देखा<br />साहब ब्रेड चबाते देखे, रिक्शा चालक पैर चलाते<br />बालक रोटी मांग रहा था मैं था दर्शक पथ पर जाते<br />पेड के नीचे रुक कर झाडी मैने मैली धूल पांव की<br />आज ना जाने क्योंकर आई, आई मुझको याद गांव की.......<br /><br />गांव में मेरे ढेर गरीबी, उतनी जितनी हो सकती है<br />बदहाली ढोती मजबूरी, जो बैठ साल भर रो सकती है<br />तन भी नगा और मकां के नाम पे केवल छप्पर भर है<br />चुल्लू भर पानी सी सांसे, जीवन खाली सी गागर है<br />फिर भी पूरे गांव भरोसे, भूला चिंता बडे घाव की....<br /><br />आज ना जाने क्योंकर आई, आई मुझको याद गांव की.......योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-28160530254294012722007-09-20T00:06:00.000-07:002007-09-20T00:09:31.299-07:00यह जमीं है गांव कीगौर से देखो इसे और प्यार से निहार लो<br />आराम से बैठों यहा पल दो पल गुजार लो<br />सुध जरा ले लो यहां पर एक हरे से घाव की<br />कि यह जमीं है गांव की, हां ये जमीं है गांव की......<br /><br />कुल कुनबा और कुटुम का अर्थ बेमानी हुआ<br />ताऊ चाचा खो गये सब खो गई बडकी बुआ<br />गांव भर रिश्तों की कैसी डोर में ही था बंधा<br />जातियों का भेद रिशतों की तराजू था सधा<br />याद है अब तक धीमरों के कुएं की छांव की<br />कि यह जमीं है गांव की, हां ये जमीं है गांव की......<br /><br />आपसी संबंधों के चौंतरों पर बैठ कर<br />थे सभी चौडे बहुत ही रौब से कुछ ऐंठ कर<br />था नही पैसा बहुत और न अधिक सामान था<br />पर मेरे उस गांव में सबका बहुत सम्मान था<br />मांग कर कपडे बने बारातियों के ताव की...<br />कि यह जमीं है गांव की, हां ये जमीं है गांव की......<br /><br />गांव का जब से शहर में आना जान हो गया<br />गांव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया<br />सैंकडों बीघे का मालिक गांव का अपना ही था<br />तन्खवाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया<br />बात करनी है मुझे उस दौर के ठराव की...<br />कि यह जमीं है गांव की, हां ये जमीं है गांव की......योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-59009517403537759512007-09-18T21:18:00.000-07:002007-09-18T21:20:44.350-07:00कुछ बात करआज के हालात पर कुछ बात कर<br />आज टूटे हाथ पर कुछ बात कर<br /><br />मै पिता से दूर हूं क्योंकर भला<br />एक बयां के घोंसले की बात कर<br /><br />गांव का बरगद बुजुर्गों का कहा<br />बदहाल से अब होंसलों की बात कर<br /><br />है पेट की पीडा रिवाजों से बडी<br />त्योहार के इस फांसले की बात कर<br /><br />आंगन मे उगी दीवार को यूं देखकर<br />आतंक से इन घायलों की बात न करयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-34319833753080362902007-08-07T22:41:00.000-07:002007-08-07T22:44:43.785-07:00जिंदगी तलाशता रहा हूं मैंखुद को ही तराशता रहा हूं मैं<br />जिंदगी तलाशता रहा हूं मैं<br /><br /><br />उसके सुख को प्यार जो भी कह सके<br />दिवानगी तलाशता रहा हूं मै<br /><br /><br />अब हुनर की कद्र करता कौन है<br />बंदगी तलाशता रहा हूं मैं<br /><br />उच्चता विचार की है खो रही<br />सादगी तलाशता रहा हूं मैं<br /><br />जिसको मिलके दिल वाह वाह कहे<br />बानगी तलाशता रहा हूं मैं<br /><br />जिसके प्रेम में पिंघल जाए पषाण<br />रवानगी तलाशता रहा हूं मैंयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-69581555134640441252007-07-23T23:02:00.000-07:002007-07-23T23:15:23.514-07:00अहसासों की बात न करहै भीड भरा ये शहर यहां पर अहसासों की बात न कर<br />इन गर्म मिजाजी लोगों से, ठंडी सांसों की बात न कर<br /><br />पोखर, नदियां, ताल, जलाशय सब उनके कब्जे में आऐ<br />बिजली बनने दे पानी से तू अब प्यासों की बात न कर<br /><br />रिश्ते सब पैसों की खातिर देख गुलामी झेल रहे हैं<br />जब हाथ हाथ से बात छुपाए तू विश्वासों की बात न कर<br /><br />भोग भोग बस भोग भोग का जीवन अब आदर्श हो गया<br />भरे पेट खाने वालों से यों उपवासों की बात न करयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-76751366514183028282007-07-19T21:30:00.000-07:002007-07-19T21:31:43.381-07:00जमाने सेआओ कुछ ऐलान सा करदें हम भी आज जमाने से<br />हर रिश्ता रिश्ता होता है, केवल मित्र निभाने से<br /><br />हमको अपनी सोच के जैसा एक खिलोना मिला नहीं<br />बाग में मेरे कोई अनोखा फूल सलोना खिला नहीं<br />नहीं धूप से बच पाओगे धूप धूप चिल्लाने से<br />नई जीत की राह मिलेगी हार से हाथ मिलाने से<br />आओ कुछ ऐलान सा करदें हम भी आज जमाने से<br /><br />बिना पैर के मैं चल पाऊं ऐसा मुझे हौंसला दो<br />पीडा सह सह मैं जी पाऊं मुझको एक घौंसला दो<br />सुर और साज कब कोई शिकवा करते हैं तराने से<br />कभी कभी मन हलका हो जाता है बात बताने से<br />आओ कुछ ऐलान सा करदें हम भी आज जमाने सेयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-28481261084546077842007-07-18T21:31:00.000-07:002007-07-18T21:32:38.066-07:00हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों मेंहमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों में<br /><br />पर महबूबा के उस आंचल की,<br />संगीत भरी छम छम पायल की<br />हर बात बता कैसे पऊंगा,<br />शायद मैं न लिख पाऊंगा<br />उसने जो नजरों से बोली वो हर बात किताबों में<br />हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों में<br /><br />कान तरसते सुनने को<br />आंखें तरसे मिलने को<br />जीह्वा तरसे हिलने को<br />लब फडकते कहने को<br />हमने उनसे क्या क्या बोले वो जजबात किताबों में<br />हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों में<br /><br />प्यार नहीं था पाने को<br />रिशता एक निभाने को<br />निजता कोई जताने को<br />कुछ भी नही छिपाने को<br />सारी उम्र न कह पाए हम अपनी बात किताबों में<br />हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों मेंयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-52557665538560137072007-07-17T04:58:00.001-07:002007-07-17T05:00:35.394-07:00आंसू पानी हो जाते हैंआंसू पानी हो जाते हैं<br />लोग रुमानी हो जाते हैं<br />पल भर मिलकर कभी कभी कुछ,<br />लोग कहानी हो जाते हैं<br /><br />एक बदन के हिस्से देखे<br />मौन आंख मे किस्से देखे<br />दूर दूर से प्यार की खातिर<br />लोग जवानी खो जाते हैं<br />पल भर मिलकर कभी कभी कुछ,<br />लोग कहानी हो जाते हैं<br /><br />कोई बिछडे कोई रोए<br />कोई पाए कोई खोए<br />छोटी सी एक जी के उमरिया<br />लोग निशानी हो जाते हैं<br />पल भर मिलकर कभी कभी कुछ,<br />लोग कहानी हो जाते हैंयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-418038292112475912007-07-13T05:16:00.000-07:002007-07-13T05:17:42.072-07:00मतलब जानिएआज बस हसने और र्रोने का मतलब जानिए<br />गांव में एक पेड के होने का मतलब जानिए<br /><br />खेत से फसलें उठाने वाले लोगों ये सुनो,<br />खेत में पहले फसल बोने का मतलब जानिए<br /><br />वातानुकूलित जगह पर सब्जियों को देखकर<br />कडकडाती धूप के होने का मतलब जानिए<br /><br />बेटे को परदेश भेजा था तो था वह खुश बहुत<br />पर तनिक बीमार के रोने का मतलब जानिए<br /><br />मुकदमों ने महक सिंह की जिंदगी को खा लिया<br />अब किसी के खेत के खोने का मतलब जानिए<br /><br />हर महीने वक्त पर मनिआर्डर मिलता तो है पर<br />हर सुबह बुढिया के फिर रोने का मतलब जानिएयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-10896047625217969052007-07-13T00:21:00.000-07:002007-07-13T04:16:58.543-07:00मतलबआज बस हसने और र्रोने का मतलब जानिए<br />गांव में एक पेड के होने का मतलब जानिए<br /><br />खेत से फसलें उठाने वाले लोगों ये सुनो,<br />खेत में पहले फसल बोने का मतलब जानिए<br /><br />वातानुकूलित जगह पर सब्जियों को देखकर<br />कडकडाती धूप के होने का मतलब जानिए<br /><br />बेटे को परदेश भेजा था तो था वह खुश बहुत<br />पर तनिक बीमार के रोने का मतलब जानिए<br /><br />मुकदमों ने महक सिंह की जिंदगी को खा लिया<br />अब किसी के खेत के खोने का मतलब जानिए<br /><br />हर महीने वक्त पर मनिआर्डर मिलता है पर<br />हर सुबह बुढिया के फिर रोने का मतलब जानिएयोगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2944663179403055995.post-31107718503282771382007-06-30T05:59:00.000-07:002007-06-30T06:02:28.859-07:00झुलसा फकीरपीपल, बरगद, महुआ, नीम,<br />धीमर, छिप्पी, टौंक, हकीम,<br />पंडित, ठाकुर, राम, रहीम,<br />कैसे सबकी बदल गई है देखो तो तकदीर,<br />गांव गांव में छांव ढूंढता फिरता एक फकीर.<br /><br />रामू पंडित, भोला धोबी,<br />दल्लू धीमर, कालू छिप्पी<br />बलबीरे ठाकुर की खोली<br />वो बदलू कुम्हार की बोली<br />जात बताते नाम नहीं ये<br />व्यक्ति की पहचान बने थे<br />अब से पहले कभी नही यूं<br />जात के नाम पे लोग तने थे<br />कुछ पढे लिखे पैसे वालों ने रची नई तहरीर<br />गांव गांव में छांव ढूंढता फिरता एक फकीर.<br /><br />अपनी किस्मत, अपना हिस्सा,<br />सबका अपना अपना किस्सा,<br />कोई बडी जमीं का मालिक<br />कोई बोये बिस्सा बिस्सा,<br />खेत किसी के किसी की मेहनत<br />फसलें सब साझी होती थीं<br />सारे गांव की जनता मिलकर<br />खेतों में फसलें बोती थीं<br />ऊंच नीच, बडके छोटे की खिंच गई एक लकीर<br />गांव गांव में छांव ढूंढता फिरता एक फकीर.<br /><br />पाठशालाओं के रस्ते अब,<br />कालेज पहुंच रहे हैं गांव.<br />सभ्य होने की इस कोशिश में<br />सभ्यता की डूबी नांव<br />अफसर, मालिक और अमीर,<br />बनते देखें गांव के लोग.<br />धीरे धीरे से हमने अब,<br />छंटते देखे गांव के लोग<br />आपसदारी और प्रेम की टूट गई तस्वीर<br />गांव गांव में छांव ढूंढता फिरता एक फकीर.योगेश समदर्शीhttp://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.com4