Wednesday, January 28, 2015

मैं गाँवों की पीड़ा गाने गाँव गाँव में जाता हूँ

मैं गाँवों की पीड़ा गाने गाँव गाँव में जाता हूँ 
अपने दिल का दर्द गाँव में अपनों को दिखलाता हूँ 
मैं खेतों की खलिहानों की पीड को भाषा देता हूँ 
घोर निराशा में कृषक है मैं उसको आशा देता हूँ 
संस्कृति का एक देवालय पड़ा है सूना गाँव में 
संस्कार पलते बढ़ते थे जहां पीपल की छाँव में 
- योगेश समदर्शी

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