राजीव जी की एक कविता हिंदी युग्म पर प्रकाशित हुई, कविता पढकर जो कुछ मन मे आया वह यहां प्रस्तुत है
आज का युवक जिन संस्कारों के साथ आगे बढ रहा है उसमे ईमानदारी, सत्य, देशप्रेम, सदाचार, जैसे शब्द नही है. वहां यदि कुछ है तो वह है विकास, सफलता, ऊंचाई, विलासिता, धन. आजकी पीढी देख रही है कि यहां क्या सम्मानित होता है, गौतम, बुध, सुभाष, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, जैसे देश दुनिया के लिये सोचने वाले लोग कभी भारत रतन नही माने गये, जे आर डी टाटा, राजीव गांधी, सत्यजीत रे, अमृत्य सेन जैसे लोग भारत रतन बने है. लगभग आज का युवा इसी दौड में है, वह अहोदेदार बनना चाहता है, पैसे वाला बनना चाहता है विदेशों में पढना और कमाना चाहता है, और खुश होने वाली बात यह है कि वह इस दौड में सफल हो रहा है. तरक्की कर रहा है. युवा शक्ति का अर्थ जब हम ना मुमकिन को मुमकिन कर सकने वाले साहस और हिम्मत की तरह लेते है तो आज का युवक युगों से चले आ रहे युवकों से कई गुना बहतर था. जब इस देश का आदर्श गांधी हुआ, विविकानंद हु,, सुभाष चंद्र बोस हुए, भगत सिंह हुए तो एक भी तत्कालीन युवा इनके रस्ते पर चल कर इन महापुरुषों जैसा बन सका नही. पर आज के युवकों के आदर्ष माईकल जैक्शन है, विश्व सुंदरिया है, फिली हीरो है, अय्यासी, दोगलापन, धूखाधडी, बेईमान होना अब कोई खोंट नही है. मह्त्तव है ऊपर के फलोर पर चढ पाने का. सफल होने से मतलब है पैसे की अधिकता, विलासिता की भरपूरता, पदों की अहोदों की सीमा के अंतिम छोर पर खडे होना. कैसे, कितने तिकडमों के बाद आप वहां पहुंचे मायने नही. किशन पटनायक सच्चे समाजवादी कुछ ना जोड सके सिद्धांतो की पोटली बांधे सारा जीवन आदर्शों की पगडंडी पर बिताया. आज कितने युवक या उनकी अपनी पीढी के लोग उनको जानते है. सवाल यह है कि हवा कैसी है, समाज कैसा है, सम्मानित कौन होता है, सुख कौन पाता है. सुख और सम्मान हर व्यक्ति की चाह हो सकता है. केवल युवक दोषी नही है.
आजादी के समय देश भर में एक लहर थी. उसी संदर्भ की एक कविता जो मैंने बहुत समय पहले लिखी थे देखें इस कविता को एक पीढी का दूसरी पीढी से संवाद के रूप में देखें
तूफानों से जिस किश्ति को लाकर सौंपा हाथ तुम्हारे,
आदर्शों की, बलिदानों की बडी बेल थी साथ तुम्हारे,
नया नया संसार बसा था, नई नई सब आशाएं थी.
मात्र भूमि और देश प्रेम की सबके मुख पर भाषाएं थे.
फिर यह विघटन की क्रियाएं मेरे वतन मे क्योंकर आई.
आपके रहते कहो महोदय यह विकृतियां कहां से आई.
आपके लालन पालन में जो खर्च हुआ देशी मिष्ठान.
कहां खो दिया खुशबू वाला चना चबेना और वह धान.
कहां गई वह घर की देहरी, कहां गया कच्चा सा मकान,
कहां गया घर के मुखिया का, बना बनाया वह सम्मान.
दूध खांड के घर में बोलों चाय नशीली कहां से आई.
आपके रहते कहो........
आलावों के बैठ चफेरे ढोल बजाती परंपराएं,
आत्म विभोरी संस्कृति से सजी धजी वह नृत्यांगनाएं
कहां कबीर को, कहां रहीम को, कहां सूर तुलसी को खोया,
कहां खो दिया हरीश्चंद्र कहां कथा कार मुंशी को खोया.
भजनों की उस धुन गंगा मे, ईलू की धुन कहां से आई.
आपके रहते कहो........
गांधी के आदर्श कहां हैं कहां भगत सुभाष बता दो,
आचरणों में अपने हमको स्रवण और रोहताश दिखा दो,
बुध का दर्शन और मनु का सिद्धांत जरा बतलाओ तो,
पंचतंत्र की कथा सरीखे पात्र हमें दिखलाओ तो,
असफाक पटेल, झांसी की रानी,
बलिदानों की अमर कहानी,
तुमने ही थी हमें सुनाई.
फिर पंडित आम्मा लालू की
भ्रष्ट कथाएं कहां से आई.
आपके रहते कहो........
मित्र यह मेरे विचार है, आज की पीढी भी कल हमसे कुछ सवाल पूछेगी वह सवाल इनसे कहीं कठिन होंगे, इसलिये मुझे लगता है कि हम उन सवालों का सामना करने कि तैयारी करें युवको को कोसने से, निराश होने से कुछ नहीं बनेगा.
Monday, May 21, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
मेरी कविता ने आपको इतना कुछ लिखने को बाध्य किया, प्रसन्नता हुई। योगेश जी, युवाओ की स्थिति हनुमान जी की तरह है जिन्हे अपनी शक्ति का अहसास नहीं है। उन्हें झकझोरना, जगाना आवश्यक है, चूंकि राष्ट्र का निर्माण न तो बच्चों का खेल है न बूढों के फलसफे।
पंडित, अम्मा लालू की भ्रष्ट कथायें सुन कर चुप रह गये इस लिये कुकुरमुत्ते पनप गये। आपने कहा मैंने कविता में समाधान नहीं दिखाया, सत्य है। समाधान यही तो है कि हमारी पीढी की सोच सकारत्मक हो, जगें...हम और आप जिनके पास लेखनी की ताकत है उनहे आग लगाने का काम करते रहना है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
nice thoughts.
please see this also.
http://soniratna.wordpress.com/2006/05/02/udhar-nahin/
बहुत सही और सटीक बात कही है कविता में। आप बधाई के पात्र है जो कविता को मात्र पढते ही नही विचारते भी हैं।
बहुत खूब..बड़ी सारी सोच एक साथ एक ही रचना मे पिरो कर बड़ी ही खूबसूरती से पेश की है, बधाई!!
आपका ये विचार मंथन पसंद आया !
वाकई सही कहा आपने.
पर आजकल ब्लॉग जगत में कुछ कबाड़ी कूड़ा ढ़ूंढ़ने निकले हैं. कभी क्भी कुछ नहीं मिलता तो नजरें बचाकर अच्छी चीजें भी उठा ले जाते हैं.
सतक्र रहें. मित्रों को भी आगाह
Post a Comment