घुघूती बासूती की पोस्ट एक और कायर पढ कर मेरे मन में ततकाल कुछ प्रतिक्रिया हुई, टिपपणी लिखने के चक्कर में पोस्ट बन गई जरा आपभी झेलों जनाब
एक कहानी सुनों
क्या आपने कभी देखे हैं
पेड
पहाड
दरिया
जंगल
पशु देखे हैं क्या कभी
हां,
मैं जानता हूं,
जरूर देखे होंगे आपने भी
देखे हैं न बोलों.....
बोलो तो एक बार.....
हां
बस कहानी यहीं से शुरू होती है
अब इस सवाल का जवाब दो
क्या आपको पेड पसंद है?
पहाड पसंद है?
जंगल पसंद है?
जंतू पसंद है?
पक्षी पसंद है?
गर्मी पसंद है, या सर्दी?
दिन पसंद है या रात?
बस यहीं से होगी शुरूआत....
बोलो बोलो उपरोक्त में से,
क्या अच्छा लगता है
क़्या अच्छा नही लगता है
बोलो ना बोलो तो सही...
क्या कहा आम पसंद है,
संतरे खट्टे लगते है,
शेर से डर लगता है,
अमेरिकन कुत्ते अच्छे लगते है,
नदी अच्छी है,
पर पहाड आपको नहीं है भाते...
इसी नाते....
मित्र मैं फिर सवाल करता हूं
बस तुम जरा साथ दो
तो निराशा हटाने का कमाल करता हूं
आम पसंद तो संतरे का क्या करते हो.
कुत्ते तो पाल लेते हो
पर जंगल से शेरों को खत्म तो नही कर देते ना
आपकी पसंद की नदियां सूख रही है
तुम उसके लिय क्या कर पाए
क्या हरे भरे पहाड को देख कर खुंदक में मर पाए
यदि नहीं
तो फिर जो न मिल सका
उससे क्या घबरान..
क्यों नाहक मौत को गले लगाना
चलों कुदरत को पहचाने.
कुछ नया झेल जाने का नाटक करें
इसी बहाने
अबकी नही तो फिर कभी
अपने मन का भी पा जाएंगे.
देखना जमाना देखेगा जब हम मुस्कुराएंगे.
Friday, May 18, 2007
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3 comments:
नही भाइ झेलने लायक नही है अभी तो पढने लायक है झेलने लायक बनाने के लिये बहुत मेहनत लगती है आपने तो बडी खुबसूरती से सवाल उठाये है और मोतियो की तरह पिरोये है
तो फिर जो न मिल सका
उससे क्या घबरान..
क्यों नाहक मौत को गले लगाना
चलों कुदरत को पहचाने.
कुछ नया झेल जाने का नाटक करें
इसी बहाने
अबकी नही तो फिर कभी
अपने मन का भी पा जाएंगे.
देखना जमाना देखेगा जब हम मुस्कुराएंगे.
----बहुत सुंदर और उत्साहवर्धक रचना. बहुत बधाई.
क्यों नाहक मौत को गले लगाना
चलों कुदरत को पहचाने।
सही है जीवन सिर्फ एक ही बार मिलता है।
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