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Monday, June 11, 2007
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जब कोई विचार दिल और दिमाग में रासायनिक क्रिया करता है तो संवेदनाएं कुलमुलाने लगती हैं. तब पूरे शरीर मे एक खलबली मचती है. कुछ बाहर आने को मचलता है. यकायक शब्द बाहर आजाते हैं. कुछ शब्द गुच्छ से जुडने लगते हैं. जिन्हें देख कर मन प्रसन्न होता है. जब मित्रों को दिखाता हूं तो वह वाह वाही देते है, बधाई मिलती है. सुनाता हूं तो लोग तालियां बजाते है. मैं इतराता हूं. जब कुछ सृजित होता है तो गौरवान्वित हो जाता हूं.
7 comments:
धन्यवाद आपका.
समीरलालजी का मुस्कुराता चहरा भी छपा है :)
धन्यवाद। अच्छा लेख है। इसी तरह हमे सभी लोगो को प्रयास करने होंगे, ताकि हम हिन्दी चिट्ठों को जन जन तक पहुँचाएं।
इमेज के नीचे लिख दीजिए "स्पष्ट रुप से पढने के लिए डबल क्लिक करें"
शुक्रिया इसे यहाँ देने के लिए
सूचना तो अच्छी है, पर इस कुम्हार के आंवे में नाद ही गायब है। मूल बात ही छूट गयी लगती है। हिन्दी चिट्ठाकारी के बारे में कुछ लिखा ही नहीं।
एक बात और! जरा ये बता दिजिये कि ये पत्र कहाँ से निकलता है। क्या यह आनलाइन भी उपलब्ध है?
आईना दिखा दिया आपने. लेकिन बात फ़िर वहीं आके ठहर गयी..........विज्ञान अच्छा नौकर किन्तु बुरा मालिक...... दोनो पहलू के लिये तैयार रहना होगा
बढ़िया आलेख. और भी बढ़िया इसलिये कि मॉडलिंग के लिये हमें चुना गया. :)साधुवाद!!
जिस भले आदमी ने लेख लिखा वो जरा हिन्दी चिट्ठों और नारद आदि का भी जिक्र कर देता तो बात बनती।
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