मैंने कई लोगों को जो बहुत कुछ सीखना चाहते हैं। वो सीखने की लालसा लिए घूमते हैं भटकते हैं। घुमते रहते हैं। किंतु सीखते नहीं है। जो सीखता है वो घूमता या भटकता नहीं बस सीख जाता है। हमारी अपनी चेतना इतनी प्रबल होती है कि यदि हम चाहें तो स्वयं ही, स्वयं से ही प्रयोग करके बहुत कुछ सीख सकते हैं। क्या सीखना है सबसे पहले यह प्रबल वेग आपके चित्त में होना आवश्यक है। अगर ये स्पष्ट हो जाए कि मुझे ये सीखना है तो बात बनने लगती है। लेकिन इसके बाद एक और प्रश्न है जो बहुत महत्तव का है, और वो है कि सीखना क्यों है? ये प्रश्न इतना महत्तव का है कि यदि इसका उत्तर जरा भी वैकल्पिक रहा तो सीखने का प्रश्न धुमिल हो जाएगा। जैसे मुझे खाना बनाना सीखना है। ये तो क्या का जवाब है। और क्यों का जवाब यदि ये है कि यदि मैंने खाना बना कर नहीं खाया तो मर जाऊँगा। तो फिर आपको कोई सिखाने वाला हो या न हो आप खाना बनाना स्वयं की प्रेरणा से ही सीख जाएंगे। अगर जवाब ये रहा कि बस ऐसे ही कभी कभी खुद भी बना कर खा लिया करेंगे। यदि क्यों का जवाब ये हुआ तो आप कुक एक्सपर्ट को खोजने में समय लगा दोगे। लेकिन यदि पहला जवाब हुआ तो आप तुरंत प्रयास करने लगोगे। एक बार विफल, एक बार स्वाद की समस्या आएगी, किंतु लगातार अभ्यास करते करते आप स्वयं से ही सीख जाएंगे। हाँ स्वयं के सीखने की प्रकि्रया में समय और संसाधन दोनों खराब अवश्य होंगे। किंतु अनुभव का स्तर उतना ही बड़ा होगा। सीखने के क्रम में यही बड़ी बात है कि सीखना क्यों है का जवाब कैसा है। जीवन मरण का प्रश्न हो तो जीवन की चाह जीने के तरीके स्वयं बना लेती है। किसी को जीना सिखाना नहीं पड़ता। एक बालक को माँ होते ही जंगल में छोड़ आई, वो 24 घंटे तक सर्ववाइव करता रहा, उसके अंतस की जीवटता के कारण ही ऐसा हुआ, उसको कोई बाह्य ज्ञान तो उस वक्त था ही नहीं। उसकी चेतना की समझ ही उसे संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। शरीर की क्षमताएं अपने आप हमारी चेतना की तरह काम करने लगती है।
कुछ लोग सीखने जाते हैं और पहले जिससे सीखने बैठते हैं उसकी योग्यता की जाँच करने लगते हैं? शंका में रहते हैं। बात साफ है जब आपका चित्त यह बात स्वीकार ही नहीं कर पा रहा है कि सामने वाले के पास आपको सिखाने जितनी सामर्थ्य है तो फिर आपका सीखना संदिग्ध ही है। इस लिए सीखना आना चाहिए। आप किसी योग्य व्यक्ति से भी सीख लोगो तो भी आप पूरा सीख जाओगो यह निश्चित नहीं, हर योग्य व्यक्ति सब जानता है यह निश्चित नहीं। आप जितना सीखोगे उससे कहीं अधिक आपके अंदर स्वयं जागृत हो सकता है। अत: सीखने से पहले समर्पण का भाव जरूरी होता है।
- योगेश समदर्शी
No comments:
Post a Comment