मेरे एक मित्र हैं नाम तो याद नही आ रहा पर सर नेम गांधी हैं. पिछले वर्ष ही उनसे भेंट हुई थी. उन्होंने नारा दिया कि नोट नहीं तो वोट नहीं. सार यह था कि देश की कुल सकल आय में देश के नागरिकों का हिस्सा होना चाहिये. और जो नेता ऐसा करने का वादा करेगा उसे हम वोट देंगे. बात आती है ब्लोग को वोट देने कि. बात रोजाना टीवी पर चल रहे रियेलिटि (जिसे मैं तो वास्तविक भी नहीं मानता) वहां पर भी नित हमसे वोट मांगे जाते हैं. देश की सरकार, राज्य की सरकार, मोह्ळ्ला लेवल तक सैंकडों मौकों पर हमारे मत के लिये लोग गुहार लगाते दिखते है. एक बार सोचा एक आम नागरिक के बारे मै जिसके वोट से कई तो मंत्री बन गये और कई क्या से क्या हो गये.पर वोट देने वाला हमेशा वहीं खडा रहा. वोट मांग कर उत्तम साबित होने की दौड पता नहीं मुझे क्यों नहीं जमती. मैं भी ब्लोगर हूं पर मैं अपना नामांकन खुद कर दूं यह मुझसे ना हो सका. मैं एक बात कहना चाह्ता हूं कि यदि मेरे मन मैं कोई खोंट नही और मैं जानता हू की मैं क्या हूं तो दूसरे मुझे चाहे जो कहें दूसरों के मत की महत्त क्या.. और मांग कर मिले वोट की वास्त्र्किता भी संदिग्ध होती है. मैं तो आपसे यही कहना चाह्ता हूं की. हमें अपना काम करना चाहिये और इसलिये करना चाहिये कि हमे करने में मजा आता है, लोगों को अच्छा लगेगा तो लोग स्वयं मुझे मानित करेंगे..आप अच्छे ब्लोगिस्ट हैं इस बात का सर्टिफिकेट आप खुद स्व्यं को दें दें कि आप उत्तम हैं या फिर राय वो मांगे जो यह तय करना चाह्ते हैं कि इन दस लोगों में से कौन उत्तम है आप किसी से अपनी लिये वोट ना मांगे मैं तो कहता हूं कि किसी भी व्यक्ति को अपने लिये वोट नहीं मांगनी चाहिये. काम बोल्ता है साहब. नैतिकता को जिंदा रहने दो. पंचायतों मै जब किसी को पंच चुना जाता था रो लोग कहती थे कि फला व्यक्ति सरपंच बनेंगे. और वह व्यक्ति जो पंचायत में केवल शामिल होनी आया था वह कहता था नहीं मैं इस जिम्मेदारी को नही उठा पाऊंगा. और जब वो सरपंच बनता था तो जिम्मेदारी निभाता थी... काम करता था. जब हम पहले से पुलाव पका लेते हैं कि हम सरपंच बनेंगे तो सब गडबड होने लगता है. आप उत्तम दर्जे के लेखक है यह लोगों को तय करने दो... टीवी पर जो लोग वोट के रूप में एस एम एस करने का निवेदन करते हैं वह वास्तव में वोट नही नोट मांग रहे होते है. ... एक एसएमएस मतलब ३ रुपये. १ लाख वोट मतलब ३ लाख रुपये.... मित्रों ब्लोग की दुनिया को स्वार्थ की दुनिया से दूर रखो बाजार हर जगह शोभा नहीं देता.. धर्मार्थ प्याऊ और अस्पताल की संस्क्२ति की महत्ता अब तो विचारी जा सकती है.. और यह काम ब्लोगिस्ट कर सक्ते है.... अखबार और पत्रिकाएं सब बाजार का खिलोना हो गई है. वहा वही लिखा और छापा जाने लगा है जो बिक सके या बिकवा सके पर ब्लोग पर वो लिखा जा सकता है जो जीवन बदल सके.... जो अमिट हो.... जो आत्मा की आवाज हो....
आत मित्र मांगना छोड दीजिये...
आपका योगेश कुमार
Friday, January 25, 2008
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1 comment:
बिलकुल मैं आपकी बात से सहमत हूँ । समझ नहीं आता कि अपने लिए लोगों को वोट माँगने की जरूरत क्यूँ पड़ जाती है। पिछली बार भी तरकश चुनावों में दिग्गजों ने इसका इस्तेमाल किया था। इस बार तो तब भी शोर शराबा काफी कम है :)
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