Monday, February 26, 2007

आजकल हम पूरी फार्म में हैं जनाब,

शत शत नमन पढ लिया बधाई
आजकल हम पूरी फार्म में हैं जनाब, हर बात पर गजल कह देते हैं कुछ भी लिखदेते हैं हमें लगता है, कि कविता बन गई. एक अपने मित्र हैं गौरव शुक्ला जी, उन्होंने हमारी एक कविता पर तारीफ की. बातचीत में उन्होंने कहा कि धन्यवाद ओरकुट का जिसकी वजह से अच्छे मित्र मिल रहे है. बस साहब आशू कवि की भांति हमने उन्हें जवाब लिखा आप पढें तारीफ के लायक लगे तो तारीफ भी की जा सकती है. टिप्पणी के बाद यदि आप अपना ई पता लिख दें तो आप मेरे मित्रों में भी शामिल हो सकेंगे.

कल्पनाएं क्या क्या बुन गई, देखिये जी नेट पर
दुनिया एक कुनबा बन गई, देखिये जी नेट पर

हम अकेले ही समझ बैठे थे अपने आपको,
मन सरीखी खुशियां छन गई, देखिये जी नेट पर

ओरकुट पर कुटकुटाते देखकर ऐसा लगा,
रूठी प्रिया झट से मन गई, देखिये जी नेट पर

एक और मित्र है, गिरीराज जी, शत शत नमन पर एक रचनाकार मित्र के जन्मदिन पर इन्होंने एक साक्षातकार प्रकाशित किया. उन्हीं के माध्यम से यह कुछ पंक्तियां लिख दी आप भी देखें

आपका जन्म दिन है, आपको शुभकामना.
पावन प्रेम की गंगा से, निर्मल हो शुभभावाना.

रच सको रचनाएं पावन मित्र तुमको इसलिये.
मार्ग की कठनाईयों का जमके करना सामना.

यह सिल सिला चला शुक्रवार से जब भाई राजीव रंजन की तारीफ के जवाब मैंने एक गजल लिखी मुझे अच्छा लगा. कसौटी पर खरी उतारने के चक्कर में रचनाकार पर रवि रतलामी भाई को भेज भी दी. उन साहब ने प्रकाशित भी कर दी. उस रचना पर चिट्ठाचर्चा पर चर्चा भी हुई. बस अपन हौसला बढ गया. अब आप यदि वह कविता / गजल पढना चाहते हैं तो आप निम्न लिंक पर जाएं पढें व तारीफ के लायक लगे तो तारीफ भी की जा सकती है. टिप्पणी के बाद यदि आप अपना ई पता लिख दें तो आप मेरे मित्रों में भी शामिल हो सकेंगे.
http://rachanakar.blogspot.com/2007/02/gazal-yogesh-samdarshi.html
ग़ज़ल की चर्चा यहाँ हुई है -http://chitthacharcha.blogspot.com/2007/02/blog-post_25.html
आज के लिये इतना ही. धन्यवाद.

1 comment:

Udan Tashtari said...


दर्द जो द्स्तूर सा बनता रहा तो एक दिन
बदलाव की आंधी भी पूरे वेग से ही आएगी


--ले आईये आँधी, लिखिये खुल कर. पाठक इंतजार में हैं. :)

 
blogvani