पिछले दिनों ठीक संसद पर हमले के दिन मेरे एक कार्टूनिस्ट मित्र ने एक अदभुत कार्टून प्रदर्शनी लगाई दिल्ली में. विषय भी रखा 'संसद पर हमला'. जो हमला आतकवादियों ने किया उससे भी बडा हमला संसद में बैठने वाले लोग किस तरह से कर रहे है. यह नजारा उस नजारे से भी कहीं ज्यादा भयावह था. सभी कार्टून तो मेरे पास नहीं है. पर हां क्योंकि यहां जिक्र किया है तो कुछ चित्र आप जरूर देखियेगा. उसी प्रदर्शनी में एक कार्टून था - जिसमें एक अध्यापिका पढा रही थी. ससद का खर्च १०००० रुपये प्रति मिनट * ( कुछ ) ( सही से याद नहीं) = ० . यह बात रेल बजट के वक्त अनायास ही याद आ गई. लालू जी अपनी उपलब्धि देश के सामने रख रहे थे और संसद में हंगामा था. भाई क्वात्रोच्ची को लेकर भाजपा भडक रही थी. संसद में सारा वक्त हम बहस में काट देते है. वाकआउट कर जाते हैं. मुझे याद है, एक बार मैंने देखा था कि बजट सत्र में सारा समय बर्बाद करने के बाद देश की संसद ने अंतिम दिन औपचारिकता निभाते हुए सभी बजटीय प्रस्तावों पर खटाखट ध्वनिमत से मोहर लगा दी थी.
खेल का मैदान अब, देखिये संसद बनी.
बाहर जिनकी घुट रही, संसद में उनकी तनी,
संसद में उनकी तनी खूब चले हथियार.
कल तक जिनके साथ, आज उन्हीं पर वार.
अब देखिये मेरे परम मित्र कार्टूनिस्ट नीरज गुप्ता के कार्टून
4 comments:
योगेशजी,
समझ में नहीं आ रहा कि आपकी पंक्तियाँ और कार्टून देखकर हँसना चाहिये या रोना.
संवेदनाओं की अच्छी प्रस्तुति.
Chaar laine Achchi hai, Kartoon in lainon ko Aur vajan de rahen hain. Vishay ke mahatva ko dekhte hue ye laine “ek nai madhushala“mein tabdeel ho sakti hain aur Aisi asha hum apke siva kisse kar sakte hain.
Ek aur baat aap jaise joshile kaviyon se ki yadi aap log sirf kavita likhte rahenge to phir sansad to apradhiyon ka akhada banegi hi. Sansad ke saath saath hamen Rajniti ko bhi garima pradan karni hogi.
Satish
bahut aachi samvednawo ko ukera hai aapne
badhiye ho
abhishek
क्या कहूँ योगेश जी, कभी कभी लगता है:
कल नुमाईश में मिला वो चीथडे पहने हुए
मैने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है..
(दुष्यंत कुमार)
अच्छी प्रस्तुति।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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