सपना देखती आंखें
उडान भरती पांखें
फल से लदी साखें
न देख.
सूनी पडी राह
मुददत पुरानी चाह
वीरानी की आह
न देख
भूख का दर्द
बहसी सा मर्द
नारी बेपर्द
न देख
प्यासी सी शाम
दूसरों का काम
बस अपना ही नाम
न देख
देख सके तो
दूसरों का सुख देख
हवाओं का रुख देख
भूखों का खाना देख
बंद पडा मयखाना देख
देख प्यारे देख
अपने अंदर पलता पाप
जरा अपनी करतूत तो नाप
तू जिस दिन अपनी गिरेबान मे झांकेगा.
उसी दिन से तेरा भगवान जागेगा.
तू सफलता के दरवाजे पर खडा होगा
सच में उसी दिन तेरा कद बडा होगा.
Friday, May 18, 2007
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2 comments:
आत्म मंथन करती आप की रचना बहुत अच्छी बन पड़ी है।बधाई।
तू जिस दिन अपनी गिरेबान मे झांकेगा.
उसी दिन से तेरा भगवान जागेगा.
बहुत खूब, योगेश भाई!!
बहुत दिन बाद दिखे??
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