Sunday, May 20, 2007

कुछ तो पौरुष की बात करो पढ कर लिखे गई एक भाव प्रधान रचना

नारी अबला,
ना री, पगली.

नारी भोग्या,
ना री, पगली.

नारी का अपमान हुआ,
ना री, पगली ना

उसका तन बदनाम हुआ
ना री, बहना ना.

औरत पर अत्याचार,
क्या केवल पुरुष करे है,
कर ना बहना सोच विचार.
क्या कोई मर्द मिला तुझको
जो अपनी मां को रौंदे है?
क्या कोई मर्द भला अपनी
बहना के प्यार को कौंदे है.
बस पीडा पतनी पाती क्यो.
क्या पति ही इसका जिम्मेदार
ना री पगली ना

मां को पीडा पतनी से,
बहन को दुख भी बीवी का
बीवी सास की दुशमन है
क्या दोशी पुरुष ही हो हर बार
ना री पगली ना.

सुनी सुनाई न तू बोल
सारे पुरुषों को ना कोस
कुछ इधर बुरे कुछ उधर बुरे,
हर बुरे का मुझको है अफसोस
औरत मर्द की दुशमनी हारी
क्या हार सका है कभी कोई प्यार
ना री पगली ना.

बीती बाते छोड दे प्यारी
दुनिया आओ सजाएं न्यारी
साथ साथ पैट्रोल पंप पर
काम करे हैं अब नर नारी
क्यों भला औरत है अबला
क्यो उसको कहते बेचारी
आज पुरुष भी बदल रहा है
बद्लो सोच अपनी पुरानी
बोलो फिर पुरोषो को कोसोगी
ना री बहना ना.

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

आप की सोच मे भि सच्चाई की झलक है।बहुत अच्छी सृजनात्म रचना है।बधाई।

मां को पीडा पतनी से,
बहन को दुख भी बीवी का
बीवी सास की दुशमन है
क्या दोशी पुरुष ही हो हर बार
ना री पगली ना.

Anonymous said...

शायद आप जैसा और लोग भी सोच सकें।

ghughutibasuti said...

अच्छी कविता लिखी है । फिर भी इस विषय पर एक पूरे लेख की आवश्यकता है । आशा है शीघ्र ही पोस्ट करूँगी ।
घुघूती बासूती

ALOK PURANIK said...

मित्र, सबके अपने चुनाव हैं, सबकी अपनी लाइफ हैं। ताकीद किये जाइए पर कौन सुनता है, हर बंदा अपने स्वार्थों के हिसाब से अपना रास्ता चुनता है।
आलोक पुराणिक

 
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