हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों में
पर महबूबा के उस आंचल की,
संगीत भरी छम छम पायल की
हर बात बता कैसे पऊंगा,
शायद मैं न लिख पाऊंगा
उसने जो नजरों से बोली वो हर बात किताबों में
हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों में
कान तरसते सुनने को
आंखें तरसे मिलने को
जीह्वा तरसे हिलने को
लब फडकते कहने को
हमने उनसे क्या क्या बोले वो जजबात किताबों में
हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों में
प्यार नहीं था पाने को
रिशता एक निभाने को
निजता कोई जताने को
कुछ भी नही छिपाने को
सारी उम्र न कह पाए हम अपनी बात किताबों में
हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों में
Wednesday, July 18, 2007
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4 comments:
बहुत खूब... एक प्यारी सी कविता। पसन्द आयी।
सुंदर भावों के साथ लिखी गई रचना।
सुन्दर रचना है।
प्यार नहीं था पाने को
रिशता एक निभाने को
निजता कोई जताने को
कुछ भी नही छिपाने को
सारी उम्र न कह पाए हम अपनी बात किताबों में
हमने चाहा हम भी लिखदें दिल की बात किताबों
वाह भाई, बहुत खूब. आनन्द आया पढ़कर.
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