सुबह सवेरे जग जाती थी, गाय धू कर दूध बिलोकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
दूध मलाई और पिटाई, तक उसके हाथों से खाई.
रोज सवेरे वह कहती थी, उठो धूप सर पे है आई.
उपले पाथ रही अम्मा को, याद करूं हूं अब मैं रोकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
रोज सवेरे वह कहती थी, उठो धूप सर पे है आई.
उपले पाथ रही अम्मा को, याद करूं हूं अब मैं रोकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
बापू, चाचा, ताऊ दादा, सबकी एक अकेली सुनती.
गलती तो बच्चे करते थे, पर अम्मा ही गाली सुनती.
रोती रोती आंगन लीपे, घूंघट भीतर लाज संजोकर.
गलती तो बच्चे करते थे, पर अम्मा ही गाली सुनती.
रोती रोती आंगन लीपे, घूंघट भीतर लाज संजोकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
काला अक्षर भैंस बताती, लेकिन राम चौपाई गाती.
पूरे घर के हम बच्चों को, आदर्शों की कथा बताती.
सत्यवादी होने को कहती, हरिश्चंद्र की कथा बताकर.
सत्यवादी होने को कहती, हरिश्चंद्र की कथा बताकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
पढीं लिखीं बहुंओं को अम्मा, बस अब तो इतना कहती है.
औरत बडे दिल की होवे है, इस खातिर वह सब सहती है.
पेड भला क्या पा जाता है, अपने सारे फल को खोकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
औरत बडे दिल की होवे है, इस खातिर वह सब सहती है.
पेड भला क्या पा जाता है, अपने सारे फल को खोकर.
गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
9 comments:
आपके प्रोफ़ाईल से मिलती-जुलती कविता, बहुत हृदयस्पर्शी है…
योगेश जी।
आप दुर्लभ हो गयी संवेदनाओं के चितेरे हैं। आप उन विषयों पर लिखते हैं जो साहित्य का विषय बनने से कतराते हैं इन दिनों। आपकी रचनाओं को मैं तहे दिल से पसंद करता हूँ चूंकि आप सही मायनों में काव्यकर्म कर रहें हैं। आपके शब्द मिट्टी से सने हैं और उनसे सोंधी खुशबू आती है।
***राजीव रंजन प्रसाद
Great!
deep feeling in your poem.
बहुत सुन्दर कविता है आपकी। बधाई !
आपने तो मुझे मेरे गांव में काम कर रही मेरी स्वर्गवासी मां से मिला दिया।
ईश्वर आपका कल्याण करे।
आभार।
उस दिन आपकी बरगद वाली रचना सुनी थी...आज इसे पढने का मौका मिला।....
दोनों एक से एक उम्दा रचनाएँ.....बधाई स्वीकार करें
बहुत सुंदर रचनाएं हैं....
अभी ताऊ जी के ब्लोग से आ रहा हूँ। और सोच रहा हूँ कि कैसे आप नजर नही आए मुझे इस ब्लोग की दुनिया में। और आते ही गाँव के फोटो पर नजर गई। सबसे पहले उसे चुराया। फिर आपकी लिखी अद्भुत रचना को पढा। सच दिल को छू गई आपकी रचना। मुझे मेरे बचपन के कीमती दिन लौटा दिये। जिन्हे मैं बहुत प्यार करता हूँ। अब तो आना जाना लगा रहेगा योगेश जी। वैसे ऐसे ही गाँव के कुछ फोटो और हैं तो जरुर बताईएगा दिल से संजोकर रखूँगा।
mera dil gav me chala gaya app ki kavita ko padh kar. ise jan jan tak pauchana chahiye. dipak chauhan 09795295967
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