मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे.
कच्चा एक माकान,
मिट्टी का सामान,
रेतीला सा आगन,
एक भोला सा मन,
लकडी वाला हल,
सरसों वाली खल,
लोटा भर के छाय,
काली वाली गाय,
यदि कहीं दिख जाय,
तब बोलूंगा आज आ गया अपने देश के गांव में.,
मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे.,
पुट्ठे वाले बैल,
जोशीले से छैल,
शरमीली सी नार,
तेल तेल की धार,
हरियाले से खेत,
उपजाऊ सा रेत,
पंगत में बारात
पीतल की पारात
लगने वाली बात
से यदि हो जाये मुलाकात
तब बोलूंगा आज आ गया अपने देश के गांव में.,
मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे.,
सरसों वाला साग
अट्ठखेली का फाग
बिन पैसे की टीड
छप्पर ठाती भीड
गांव भर की लाज
एक रोटी एक प्याज
भैंसो से भी प्यार
मेहनत को तैयार
खुशी खुसी बैगार
यदि कहीं दिख जाय,
तब बोलूंगा आज आ गया अपने देश के गांव में.,
मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे.,
Tuesday, February 10, 2009
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9 comments:
बहुत अच्छे विचार हैं आपके और उसपर यह कविता भी सुन्दर बन पड़ी है!
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गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम
कितनी ही पुरानी यादें ताजा हो आयीं...गाँव में गुजरे सारे पल सजीव हो उठे...बहुत सुंदर कविता.
अच्छी याद दिलाई पुरानी यादों की!!!
बहुत गहरे उतारा...जहाँ भी हो, आवाज लगाओ..अपना फोन नम्बर ईमेल पर भिजवाओ/
वाह योगेश जी आपने तो ,,,,,,,,, मैं न जाने कहां आ गया हूं प्रदेश के गांव मे...... के माध्यम से वास्तव में देश और संस्कृति की तस्वीर ही खिंच दी है ..... शुभकामनाएं.
बहुत सुंदर िचत्रण, माटी की खुसबू से ओतप्रोत किवता। बधाई।
कविता तो बहुत ही लयात्मक बन पड़ी है .....
पर आज के गाँव की हकीकत काफी बदसूरत है ,दोस्त.. बात-बात में मार-काट ,जाति-धर्म की विद्रूपता और ओछी राजनिति ने आज के गाँव को नरक में तब्दील कर दिया है..
apne hi kisi gaaoN ke swachh parivesh ka sjeev chitran.....
achhi rachna hai . . . .
---MUFLIS---
hummmmmmmm !
Dum hai aapki kavita me.
Poora gaav ghuma diya apni kavita ke madhyam se.
Great going !!!
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