Wednesday, February 11, 2009

गांव का घर मानव मंदिर, पत्थर का माकान नहीं है.

गांव लोगों के रहने का,
केवल एक स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का माकान नहीं है.

सभ्यता के चरम पै जाकर,
भाव सरल मन में जब आएं.
प्रकृति की गोद में खेलें,
पछी संग बैठे बतियायें.
खुली हवा में करें ठिठोली,
अंदर तक चित्त खुश हो जाए.
गांव छोड कर ऐसे सुख का,
अन्य कोई स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर
पत्थर का माकान नहीं है

अपवादों को भूलो, पहले,
गांव का विज्ञान उठाओ.
कम साधन में जीने का,
वह पहला सुंदर ज्ञान उठाओ.
सहभागी हो साथ जिंएंगे,
जीवन एक अभिनाय उठाओ.
कल यंत्रों से चूर धरा को,
धो दे वह अरमान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का माकान नहीं है.

9 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

बंधु, गाँव की जो मोहक आदर्शवादी तस्वीर आपकी रचना में परिलक्षित होती है,वह वांछनीय पर आज की हकीकत से परे है...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की है आपने ।बधाई स्वीकारें।

गांव लोगों के रहने का,
केवल एक स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का माकान नहीं है.

Mohinder56 said...

गांव के परिवेश से आपका सरोकार सराहनीये है.. और आपकी रचना सत्य का चेहरा है..

Unknown said...

Yogeshji, ab kya kahen, aapne bolne ke liye kuch chora hi nahi. Bas yahi prarthana hai ooper wale se ki 'Aap likhate jayen, or hamare jaise log padte jayen'- Satyendra

शोभा said...

सभ्यता के चरम पै जाकर,
भाव सरल मन में जब आएं.
प्रकृति की गोद में खेलें,
पछी संग बैठे बतियायें.
खुली हवा में करें ठिठोली,
अंदर तक चित्त खुश हो जाए.
गांव छोड कर ऐसे सुख का,
अन्य कोई स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर
पत्थर काबहुत सुन्दर लिखा है। माकान नहीं है

Girish Kumar Billore said...

पछी संग बैठे बतियायें.
खुली हवा में करें ठिठोली,
अंदर तक चित्त खुश हो जाए.
गांव छोड कर ऐसे सुख का,
superb badhaaiyaan

Anonymous said...

काव्‍य के माध्‍यम से सच कह रहे हैं आप। लेकिन डा0 रामजी गिरि की बात भी काबिले गौर है।

खोरेन्द्र said...

गांव का घर मानव मंदिर ....aap prkriti .aur ganv se..schitr shbd ...lekr achchhi rchna krte hai .

खोरेन्द्र said...

गांव का घर मानव मंदिर ....aap prkriti .aur ganv se..schitr shbd ...lekr achchhi rchna krte hai .

 
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