गांव लोगों के रहने का,
केवल एक स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का माकान नहीं है.
सभ्यता के चरम पै जाकर,
भाव सरल मन में जब आएं.
प्रकृति की गोद में खेलें,
पछी संग बैठे बतियायें.
खुली हवा में करें ठिठोली,
अंदर तक चित्त खुश हो जाए.
गांव छोड कर ऐसे सुख का,
अन्य कोई स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर
पत्थर का माकान नहीं है
अपवादों को भूलो, पहले,
गांव का विज्ञान उठाओ.
कम साधन में जीने का,
वह पहला सुंदर ज्ञान उठाओ.
सहभागी हो साथ जिंएंगे,
जीवन एक अभिनाय उठाओ.
कल यंत्रों से चूर धरा को,
धो दे वह अरमान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का माकान नहीं है.
Wednesday, February 11, 2009
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9 comments:
बंधु, गाँव की जो मोहक आदर्शवादी तस्वीर आपकी रचना में परिलक्षित होती है,वह वांछनीय पर आज की हकीकत से परे है...
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की है आपने ।बधाई स्वीकारें।
गांव लोगों के रहने का,
केवल एक स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का माकान नहीं है.
गांव के परिवेश से आपका सरोकार सराहनीये है.. और आपकी रचना सत्य का चेहरा है..
Yogeshji, ab kya kahen, aapne bolne ke liye kuch chora hi nahi. Bas yahi prarthana hai ooper wale se ki 'Aap likhate jayen, or hamare jaise log padte jayen'- Satyendra
सभ्यता के चरम पै जाकर,
भाव सरल मन में जब आएं.
प्रकृति की गोद में खेलें,
पछी संग बैठे बतियायें.
खुली हवा में करें ठिठोली,
अंदर तक चित्त खुश हो जाए.
गांव छोड कर ऐसे सुख का,
अन्य कोई स्थान नहीं है.
गांव का घर मानव मंदिर
पत्थर काबहुत सुन्दर लिखा है। माकान नहीं है
पछी संग बैठे बतियायें.
खुली हवा में करें ठिठोली,
अंदर तक चित्त खुश हो जाए.
गांव छोड कर ऐसे सुख का,
superb badhaaiyaan
काव्य के माध्यम से सच कह रहे हैं आप। लेकिन डा0 रामजी गिरि की बात भी काबिले गौर है।
गांव का घर मानव मंदिर ....aap prkriti .aur ganv se..schitr shbd ...lekr achchhi rchna krte hai .
गांव का घर मानव मंदिर ....aap prkriti .aur ganv se..schitr shbd ...lekr achchhi rchna krte hai .
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