Saturday, March 7, 2009

इस होली पर कैसे, करलूं बातें साज की

अभी हरे हैं घाव,
कहां से लाऊं चाव,
नहीं बुझी है राख,
अभी तक ताज की

खून, खून का रंग,
देख-देख मैं दंग,
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की


उसके कैसे रंगू मैं गाल
जिसका सूखा नहीं रुमाल
उन भीगे होठों को कह दूं
मैं होली किस अंदाज की
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की

10 comments:

Arun Arora said...

दर्द अपनी जगह फ़िर भी दुनिया तो चलती ही है ना दोस्त .

Anita kumar said...

उसके कैसे रंगू मैं गाल
जिसका सूखा नहीं रुमाल
उन भीगे होठों को कह दूं
मैं होली किस अंदाज की
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की

bahut khoob

राजीव रंजन प्रसाद said...

उसके कैसे रंगू मैं गाल
जिसका सूखा नहीं रुमाल
उन भीगे होठों को कह दूं
मैं होली किस अंदाज की
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की

बेहद संवेदनशील।

शोभा said...

उसके कैसे रंगू मैं गाल
जिसका सूखा नहीं रुमाल
उन भीगे होठों को कह दूं
मैं होली किस अंदाज की
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की
बात तो सही है किन्तु बीती ताही बिसार दे, आगे की सुध ले। यही जीवन की रीत है। होली की शुभकामनाएँ।

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छे भाव से युक्‍त रचना ... अच्‍छा प्रस्‍तुतीकरण ... होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

Anonymous said...

bahut marmik rachana ,holi ki badhai,sahi hai duniya chalti hi hai.chahe rumal sukhe na sukhe.

Unknown said...

योगेश जी बहुत ही अच्छी कविता । संवेदनशील भावनाएं उकेरती हुई।

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

बहुत बढ़िया, अति सुन्दर. योगेश जी, बस कुछ पोस्टों में हिन्दी की वर्तनी दुरुस्त कर लें, बस.

mark rai said...

खून, खून का रंग,
देख-देख मैं दंग,
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की......
. होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.....

sandeep sharma said...

बहुत खूब, योगेश जी...

भूल गए आप तो, लेकिन एक बार किसी अन्य ब्लॉग पर आपका नाम देखकर मुझे आप याद आ गए...

इधर-उधर ब्लोग्स पर खोजा तो आखिर मिल ही गए...

आपकी सभी रचनाएँ पढ़ी.. अच्छा लगा....

 
blogvani