आप टी.वी देखते है? क्या कहा देखते है .... हां आप नहीं देखते.... और आप?.... कभी कभी देखते हैं! जी बहुत अच्छा है. वैसे मुझे आपसे कुछ खास लेना देना नहीं है, देखते हो तो अपने लिये, नहीं देखते तो अपने लिये. मैं तो अपनी बात बता रहा था. पिछले काफी समय बाद हमने घर में टी.वी महाराज की स्थापना की है. 'टाटा स्काई भी लगा डाला ताकी लाईफ हो जाए झिंगालाला!' पर ना तो लाईफ मे कुछ बद्लाव आया और ना वाईफ में ही. क्या कहा वाईफ में क्या बदलाव आना था? .... अरे साहब कुछ सासा बहू की पोल्टिक्स वह भी सीख जाती? पर नहीं कुछ बद्ला नहीं आया. बच्ची जरूर टी.वी देखती रहने के कारण पढाई से दूर हो गई है. हर महीने टाटा का एक मैसेज भी टी.वी पर ही आजाता है- निकालिये ना - किराया टीवी देखने का. मैं आज सोच तो यह रहा था कि दिमाग पर जोर डालकर देखा जाए कि टी वी का लाभ क्या है. तो न्यूज चैनलों की याद आगई. वाहा क्या फायदे हैं जनाब? सारी दुनिया की खबर देख सकते हैं आप. पर फिर अचानक याद आ गया एक विज्ञापन. जिसे मैंने अकेले में देखा तो कुछ और लगा और जब बच्ची के साथ बैठे हुए देखा तो शर्म से चैनल बदलना पडा. जी हां पूरा विज्ञापन यहां क्या बताऊं बस इतना ही सुन समझ लो कि अपन लक पहन कर चलने का सबक देने वाल यह विज्ञापन सरेआम "निकालिये ना" की चुनौती देता है! क्या किया जाए साहब. बडा विचित्र समय है. लोक लिहाज उठ चली है. क्या ऐसे विज्ञापनों पर सेंसर नहीं लगनी चाहिये. आप ही बताएं क्या यह सब सही है, क्या हम सबको मिलकर अब नही कहना चाहिए कि ऐसे फूहड विज्ञापनों को निकालिए ना!......
शर्म आती है अपने बानाए हालात पर.
शर्म आती है आज आपनी ही बात पर.
शर्म आती नहीं क्यों उनको भला?
जो प्रहार करते हैं जज्बात पर.
Thursday, March 15, 2007
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3 comments:
सच बात है अब समय आ गया है विज्ञापन भी ढंग से सेंसर होने चाहिए, कई विज्ञापनों मे फूहड़ता और नग्नता होती है। हो सकता है कुछ लोगों को पसन्द हो, लेकिन परिवार के साथ बैठकर देखते समय सहजता महसूस नही होती।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी कोई चीज है महाराज. आपको पसन्द नहीं चेनल बदल लें.
यह तो थी ज्ञानीयों वाली बात. मगर आपके जज्बातो को समझ सकता हूँ, आखिर हमारा दूःख एक ही जो है.
बहुत सही कहा आपने विज्ञापन में भी ये लोग अश्लीललता परोसने लगे हैं, घर वालों के साथ बैठे बहुत ही असहज महसूस होता है।
ऐसे विज्ञापन बिल्कुल सेंसर होने चाहिए।
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