कुछ लोग है जो बिना बात के ही कभी तो हंसने लगते है, और कभी रोने लगते है. हंसने का कारण पूछो तो कहेंगे, बस हमारी मर्जी है हंस रहे हैं. रोतो से पूछो तो कहेंगे यूं ही मन किया रो पडे. एक कहावत है "रोत्ता जावे, मरो कि खबर लावे" तो रोने वाले लोग ऐसे ही होते हैं. एक साहब है. मैं उन्हें पहले बहुत अच्छा इनसान मानता था, तब शायद मैं उन्हें कम जानता था. काम करने में माहिर थे. हर काम बडे मन से करते थे. उन्हें काफी समय तक देखा पर कभी कोई अहंकार मुझे उनमें नहीं दिखा. कार्यालय में कुछ तबदीलियां हुई. वह साहब तबदील हो गये. अबतक जिन कामों को वह कर्म की तरह कर रहे थे, अब उसी काम को बिना किसी के कहे जिम्मेदारी मान बैठे. ये समझ लो कि खुद को एकदम तान बैठे. पूरी कहानी तो नहीं बस आप इन चार लाईनों का आनंद उठाईए....
तली का दूध देखो कैसे उफनता जा रहा है,
सिगरटी टांग वाला पहलवान बनता जा रहा है.
खाने को दौडता है कैसे वो पत्थरों को
बिना दांत के जो केला ना चबा पा रहा है.
कुत्ते जो भौंकते है उन पर पलटना कैसा?
बुलंदियो के पथ पर वह बढता जा रहा है.
Friday, March 16, 2007
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1 comment:
रोता रोने की ही खबर लाता है- सही बात है!
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