Tuesday, May 22, 2007

हम हौंसलों की ढाल लेके बढते जाएंगे.

आहिस्ता आहिस्ता हम भी सीख जाएंगे
आपकी तरह ही हम भी मुस्कुराएंगे.

शब्द एक अर्थ सबके अपने अपने हैं
आपकी पसंद का गीत हम न गाएंगे.

रास्तों की दूरियों के मायने हैं क्या
मंजिलों से पहले हम तो रुक न पाएंगे.

हाथ में हथियार लेके लड रहे है सब,
हम हौंसलों की ढाल लेके बढते जाएंगे.

तू सितम करेगा हमपे जितने सोचले.
उतने ही तेरे करीब हम तो आएंगे.

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

योगेश जी,आप की रचना बहुत अच्छी है।बधाई।

vishesh said...

बहुत बढि़या रचना. बधाई स्‍वीकारें.

विजेंद्र एस विज said...

योगेश जी..सुन्दर रचना लगी..बेहद सकरात्मक सोच लिये हुए.
दाद कबूल करें!
-विज्

राजीव रंजन प्रसाद said...

हमेशा की तरह एक और सुन्दर प्रस्तुति..
बधाई आपको।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Udan Tashtari said...

बढ़िया सोच और उत्तम भाव, बधाई!!

vishesh said...

सुंदर रचना के लिए

 
blogvani