Monday, July 23, 2007

अहसासों की बात न कर

है भीड भरा ये शहर यहां पर अहसासों की बात न कर
इन गर्म मिजाजी लोगों से, ठंडी सांसों की बात न कर

पोखर, नदियां, ताल, जलाशय सब उनके कब्जे में आऐ
बिजली बनने दे पानी से तू अब प्यासों की बात न कर

रिश्ते सब पैसों की खातिर देख गुलामी झेल रहे हैं
जब हाथ हाथ से बात छुपाए तू विश्वासों की बात न कर

भोग भोग बस भोग भोग का जीवन अब आदर्श हो गया
भरे पेट खाने वालों से यों उपवासों की बात न कर

4 comments:

Arun Arora said...

भोग भोग बस भोग भोग का जीवन अब आदर्श हो गया
भरे पेट खाने वालों से यों उपवासों की बात न कर

अच्छी रचना पर थौडी और लम्बी होनी चाहिये थी

Reetesh Gupta said...

रिश्ते सब पैसों की खातिर देख गुलामी झेल रहे हैं
जब हाथ हाथ से बात छुपाए तू विश्वासों की बात न कर



अति सुंदर रचना ....बधाई

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, भाई. और बढ़ाओ इसे.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत अच्छी रचना लिखी है।बधाई।

 
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